देश-दुनिया के इतिहास में 01 मार्च की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह ऐसी तारीख है जिसने अमेरिकी में हुए विस्फोट से मानवता को कंपा दिया था। दरअसल 01 मार्च, 1952 को अमेरिका ने हाइड्रोजन बम का सफल परीक्षण किया था। इसे मानव इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा और भयंकर विस्फोट माना जाता है।
इसकी शक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह हिरोशिमा और नागासाकी को नष्ट करने वाले परमाणु बम से हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली था। इसकी वजह से दुनिया को बहुत नुकसान हुआ। ऐसा भी कहा जाता है कि यह हाइड्रोजन बम संपूर्ण पृथ्वी से जीवन को पूरी तरह से खत्म कर सकता है। यहां तक कि इसके हमले के बाद स्वयं अमेरिका को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि फिर ऐसे विध्वंसकारी हथियार के निर्माण का औचित्य क्या हो सकता है?
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसका परीक्षण प्रशांत क्षेत्र स्थित मार्शल द्वीपों के बिकिनी द्वीप समूह के बीच किया था। तब अमेरिका को एहसास नहीं था कि उसका यह प्रयोग इतना शक्तिशाली अथवा घातक हो सकता है, क्योंकि परीक्षण के बाद उस पूरे क्षेत्र से जीवन पूरी तरह से समाप्त हो गया था। अमेरिका ने इसकी टेस्टिंग को ‘माइक शॉट’ का नाम दिया था। इस हाइड्रोजन बम को बनाने का पीछे अमेरिका का मुख्य लक्ष्य दुनिया को अपनी ताकत दिखाना था।
वैज्ञानिक भाषा में इस तरह के बम को थर्मोन्यूक्लियर बम या एच-बम कहते हैं। इस हाइड्रोजन बम को बनाने का श्रेय एनरिको फर्मी को जाता है। इसके निर्माण में ट्रिटियम और ड्यूटेरियम का इस्तेमाल किया गया। यह हाइड्रोजन बम आइसोटोप के जुड़ने के सिद्धांत पर कार्य करता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी सिद्धांत पर सूर्य की शक्ति बरकरार रहती है। इस हाइड्रोजन बम के तीन प्रमुख चरण होते हैं। इसके धमाके से उत्पन्न ऊर्जा सूर्य से उत्पन्न ऊर्जा के समान होती है। इस पर दृष्टि पड़ने मात्र से व्यक्ति अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह से खो सकता है। इसके धमाके से उत्पन्न शॉक वेव्स किसी भी मजबूत से मजबूत चीज को भी नष्ट कर सकती है। इसका परिणाम कितना भयावह हो सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।