इतिहास के पन्नों में 04 फरवरीः ”चौरी चौरा” न होता तो गांधी जी वापस न लेते असहयोग आंदोलन

देश-दुनिया के इतिहास में 04 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह ऐसी तारीख है जिसने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को प्रभावित किया। इस आंदोलन के दौरान 04 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इसमें 23 पुलिसवालों की मौत हो गई। इस घटना में तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी। दरअसल लोगों को पता चला था कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है। इससे गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी।

थाना फूंकने की घटना के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी, 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था। हालांकि महात्मा गांधी के इस फैसले से क्रांतिकारियों का एक दल नाराज हो गया था। 16 फरवरी, 1922 को गांधी जी ने अपने लेख ‘चौरी चौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं। उन्होंने इस घटना के लिए पुलिसवालों को जिम्मेदार ठहराया था। गांधी जी का मानना था कि पुलिस के उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया।

इसके बाद गांधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया। असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 04 सितंबर, 1920 को पारित हुआ था। गांधी जी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएंगे। इसके तहत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज भारतीयों पर शासन कर रहे थे। उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेजी कानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही। खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था।

देश की आजादी के बाद 1971 में गोरखपुर जिले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया। इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंची एक मीनार बनवाई। इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया। इसे लोगों के चंदे के पैसे से बनाया गया। इसकी लागत तब 13,500 रुपये आई थी। बाद के वर्षों में केंद्र सरकार ने शहीदों की याद में एक अलग शहीद स्मारक बनवाया। अब इसे ही मुख्य शहीद स्मारक माना जाता है। इस पर शहीदों के नाम खुदवा कर दर्ज किए गए हैं। कुछ समय बाद भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाईं। इनके नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस। दरअसल चौरी-चौरा दो अलग-अलग गांवों के नाम थे। रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था। उन्होंने जनवरी 1885 में यहां एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी। इसलिए शुरुआत में सिर्फ रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था। बाद में जो बाजार लगने शुरू हुए, वो चौरा गांव में लगने शुरू हुए। जिस थाने को 04 फरवरी, 1922 को जलाया गया था, वो भी चौरा में ही था। इस थाने की स्थापना 1857 की क्रांति के बाद हुई थी। यह एक तीसरे दर्जे का थाना था।

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