इतिहास के पन्नों में 04 मईः याद आ गई देश की पहली महिला जज अन्ना चांडी की कहानी

देश-दुनिया के इतिहास में 04 मई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इसी तारीख को 1905 में देश की पहली महिला जज का जन्म हुआ था। केरल के त्रिवेंद्रम में जन्मीं अन्ना चांडी ने 1926 में त्रिवेंद्रम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। कानून की डिग्री लेने वाली वे केरल की पहली महिला थीं। 1929 से उन्होंने वकालत शुरू की। 1930 में ‘श्रीमती’ नाम से एक पत्रिका शुरू की, जिसमें महिलाओं की आजादी, विधवा विवाह और महिलाओं से जुड़े तमाम मुद्दों पर लिखने लगीं।

साल 1931 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने का फैसला किया। अन्ना श्री मूलम पापुलर असेंबली के चुनाव में उतरीं। उनके विरोधियों को एक महिला का चुनाव लड़ना पसंद नहीं आया। उन पर तरह-तरह के आरोप लगाए गए और चरित्र पर उंगलियां उठाई गईं। पोस्टर छपवाकर उनका दुष्प्रचार किया गया। नतीजा ये हुआ कि अन्ना हार गईं। लेकिन वे इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाली थीं। अगला चुनाव वो फिर लड़ीं और इस बार जीतीं।

1937 में त्रावणकोर के दीवान ने उन्हें मुंसिफ नियुक्त किया। इसके साथ ही देश की पहली महिला जज बन गईं। यहां से अन्ना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1948 में वो जिला जज बन गईं। 09 फरवरी 1959 को अन्ना केरल हाई कोर्ट की जज बनाई गईं। इसके साथ वे भारत के किसी भी हाईकोर्ट की पहली महिला जज बनीं। 05 अप्रैल 1967 तक वो इस पद पर रहीं। यहां से रिटायर होने के बाद उन्हें लॉ कमीशन ऑफ इंडिया में नियुक्ति दी गई। 20 जुलाई 1996 को 91 साल की उम्र में जस्टिस चांडी का निधन हो गया।

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