देश-दुनिया के इतिहास में 04 अक्टूबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत और हिन्दी के लिए खास है। बात 1977 की है। मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेयी विदेशमंत्री थे। चार अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा का 32वां सत्र होना था।
भारत की ओर से वाजपेयी जी इस सत्र में शिरकत कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका पहला संबोधन था। उन्होंने फैसला लिया कि वे अपना संबोधन हिन्दी में देंगे। यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा था कि संयुक्त राष्ट्र में कोई नेता हिन्दी में अपना भाषण देने वाला था। ऐसा नहीं था कि वाजपेयी जी को अंग्रेजी नहीं आती थी। वे धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे। लेकिन उन्होंने इस मौके का इस्तेमाल हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए किया। पहली बार भारत की राजभाषा संयुक्त राष्ट्र के मंच से सुनाई दी।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच से परमाणु निरस्त्रीकरण, सरकार प्रयोजित आतंकवाद और विश्व संस्था में सुधार जैसे अहम मुद्दों पर प्रभावी तरीके से भारत का पक्ष रखा। वाजपेयी ने कहा-वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। भारत में हम सभी वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में विश्वास रखते हैं। भाषण खत्म होने के बाद सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी का तालियों से स्वागत किया।