देश-दुनिया के इतिहास में 05 सितंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारतीय विमान परिचारिका नीरजा भनोट के अदम्य शौर्य, पराक्रम और बलिदान के रूप में हमेशा याद रखी जाएगी। हुआ यह था कि 1986 में इसी रोज विमान (पीएएन एएम-73) ने मुंबई से उड़ान भरी। विमान में 360 पैसेंजर और 19 क्रू मेंबर थे। इस विमान को पाकिस्तान के कराची और जर्मनी के फ्रेंकफर्ट होते हुए न्यूयॉर्क जाना था।
मुंबई से उड़ान भरने के बाद विमान ने कराची के जिन्ना एयरपोर्ट पर लैंड किया। यहां कुछ यात्री उतरे और कुछ सवार हुए। यह क्रम चल ही रहा था कि एयरपोर्ट के सुरक्षा चक्र को तोड़ते हुए हथियारों से लैस चार आतंकी विमान में घुस गए।
यह देखकर पायलट और को-पायलट विमान छोड़ भाग गए। विमान में अब सीनियर क्रू मेंबर नीरजा भनोट बची थीं। आतंकियों ने नीरजा से कहा कि वे सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्र करे। आतंकियों का निशाना अमेरिकी नागरिक थे। इसलिए वे पासपोर्ट के जरिए अमेरिकी नागरिकों की पहचान करना चाहते थे। नीरजा ने पासपोर्ट एकत्र तो किए पर अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छुपा दिए।
आतंकवादी चाहते थे कि विमान को साइप्रस ले जाया जाए और फिरौती में फिलिस्तीन के कैदियों को रिहा करवाया जाए। मात्र 23 साल की नीरजा ने सूझबूझ दिखाई और आपातकालीन द्वार से यात्रियों को बाहर निकालने लगीं। यह देखकर आतंकियों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। आतंकियों से लोहा लेते हुए नीरजा शहीद हो गईं। नीरजा के शौर्य, पराक्रम और सर्वोच्च बलिदान को देखते हुए भारत सरकार ने अशोक चक्र से सम्मानित किया।पाकिस्तान ने तमगा-ए-इंसानियत और अमेरिका ने जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड प्रदान किया।