इतिहास के पन्नों में 07 अप्रैलः सितार के साधक पंडित रविशंकर

देश-दुनिया के इतिहास में 07 अप्रैल की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में लोकप्रियता के नए आयाम देने वाले सितार वादक पंडित रविशंकर से अटूट रिश्ता है। उनका जन्म 07 अप्रैल, 1920 को बनारस में हुआ था। सात भाइयों में सबसे छोटे रविशंकर की बचपन से ही संगीत में रुचि थी। रविशंकर भारत के उन गिने-चुने म्यूजिशियन में से एक हैं, जो पश्चिम में भी खासे लोकप्रिय रहे। पंडित जी 10 साल की उम्र से ही अपने भाई के डांस ग्रुप का हिस्सा थे। शुरुआत में उनका झुकाव डांस पर था पर 18 साल की उम्र में उन्होंने सितार सीखना शुरू किया और इसके लिए मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली।

पंडित रविशंकर का अपने सितार से गहरा जुड़ाव था। वे दुनिया में कहीं भी शो करने जाते तो प्लेन में उनके लिए दो सीटें बुक की जाती थीं। एक सीट पंडित रविशंकर के लिए दूसरी सुरशंकर के लिए। सुरशंकर उनके सितार का नाम था। पंडित रविशंकर का वैवाहिक जीवन विवादों से घिरा रहा। उनकी पहली शादी 1941 में गुरु अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा से हुई। एक बेटे के जन्म के बाद वे अन्नपूर्णा से अलग हो गए। फिर वे नृत्यांगना कमला देवी के संपर्क में आए। कमला देवी से संबंध तोड़ने के बाद वे सुकन्या राजन के संपर्क में आए जिनसे उन्हें एक पुत्री अनुष्का शंकर का जन्म हुआ। 1980 के दशक के अंत में उनका संबंध सु जोन्स से रहा, जिनसे 1989 में बेटी नोराह जोन्स का जन्म हुआ, जो अमेरिका में आज एक प्रसिद्ध गायिका हैं।

पंडित रविशंकर की पहचान भारतीय संगीत को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाने को लेकर है। 1966 में उनकी मुलाकात बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन से हुई थी। उस समय युवाओं में रॉक और जैज म्यूजिक का अपना जुनून था। रविशंकर ने युवाओं के बीच जाकर उनका ध्यान खींचा। उन्होंने जॉर्ज हैरिसन, गिटारिस्ट जिमी हैंड्रिक्स और वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन जैसे नामचीन विदेशी म्यूजिशियंस के साथ ‘फ्यूजन’ म्यूजिक बनाया।

पंडित रविशंकर को संगीत से इतना प्रेम था कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद खुद को स्टेज पर आने से रोक नहीं सके। चार नवंबर, 2012 को कैलिफोर्निया में उन्होंने अपनी बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार परफॉर्म किया। प्रस्तुति से पहले उनकी तबीयत इतनी खराब थी कि ऑक्सीजन मास्क पहनना पड़ा था। उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से ये कार्यक्रम पहले तीन बार टाला जा चुका था। देश-विदेश के तमाम पुरस्कारों के अलावा उन्हें तीन बार ग्रैमी पुरस्कार भी मिले। भारत में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया। 1986 से 1992 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। 12 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया।

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