इतिहास के पन्नों में 07 जूनः रंगभेद के खिलाफ गांधी ने 1893 में दक्षिण अफ्रीका में फूंका बिगुल

वैसे तो देश-दुनिया के इतिहास में 07 जून को ऐसा बहुत कुछ घटा, जिससे यह तिथि महत्वपूर्ण हो गई। मगर दुनिया में रंगभेद के खिलाफ पहली बार आवाज उठाने के लिए भी 07 जून को याद किया जाता है। 07 जून, 1893 को ही मोहनदास करमचंद गांधी ने रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन का आगाज किया। इसे ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन के नाम से जाना जाता है। उन्हें दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन के प्रथम श्रेणी के कोच से सामान के साथ जबरन उतार दिया गया था। वह वकालत करने गए थे।

हुआ यूं: गांधी अपने एक क्लायंट का केस लड़ने के लिए डरबन से प्रीटोरिया जा रहे थे। वह जिस लॉ फर्म में कार्यरत थे, उसने उनके लिए ट्रेन में फर्स्ट क्लास सीट बुक की थी। रात 9 बजे वह नटाल की राजधानी मैरित्जबर्ग पहुंचे तो रेलवे हेल्पर उनके पास बिस्तर लेकर आया। गांधी ने उनका शुक्रिया अदा किया और कहा कि उनके पास खुद का बिस्तर है। थोड़ी देर बाद एक दूसरे यात्री ने गांधी को गौर से देखा और कुछ अधिकारियों को साथ लेकर लौटा। कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर एक अधिकारी गांधी के पास आया और उनसे थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में जाने को कहा क्योंकि फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सिर्फ गोरे लोग ही सफर कर सकते थे। गांधी ने इस पर जवाब दिया- ‘लेकिन मेरे पास तो फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट का टिकट है।’ और कंपार्टमेंट छोड़ने से इनकार कर दिया। इस पर उस अधिकारी ने पुलिस को बुलाने और धक्का देकर जबरन बाहर करने की धमकी दी। गांधी ने उससे कहा कि वह उनको चाहे तो धक्के मारकर बाहर कर सकता है लेकिन वह अपनी मर्जी से बाहर नहीं जाएंगे। उसके बाद उनको धक्का मारकर बाहर कर दिया गया और उनके सामान को दूर फेंक दिया गया। गांधी रात में स्टेशन पर ही ठंड से ठिठुरते रहे।

इस घटना से गांधीऔर मजबूत होकर उभरे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग के नाम पर होने वाले भेदभाव और भारतीय समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का दृढ़ निश्चय किया। यहीं से गांधी का एक नया अवतार जन्म लेता है और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए कमर कस लेते हैं। कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही रुकने का फैसला किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एक कानून के खिलाफ मुहिम चलाई जिसके तहत भारतीय समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। 1894 में उन्होंने नटाल इंडियन कांग्रेस का गठन किया और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय नागरिकों की दयनीय हालत की ओर दुनिया का ध्यान खींचा। 1906 में ट्रांसवाल सरकार ने भारतीयों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। उस समय गांधी ने पहली बार सत्याग्रह या सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ा। सात साल के आंदोलन के बाद गांधी की कोशिश रंग लाई और दक्षिण अफ्रीकी सरकार समझौते के मेज पर आई। दक्षिण अफ्रीका में उन्हें कई बार गिरफ्तार किया। 1914 में गांधी भारत लौटे और बाद के दिनों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई, जिसका नतीजा भारत को मिली आजादी की शक्ल में सामने आया।

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