इतिहास के पन्नों में 09 जूनः अंग्रेजों से लोहा लेने वाले महानायक बिरसा मुंडा 1900 में अमर हो गए

वैश्विक इतिहास के पन्नों में वैसे तो हर तिथि का महत्व है पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कालक्रम में 09 जून का अहम स्थान है। 25 वर्ष से भी कम उम्र में बिरसा मुंडा ने अपनी नेतृत्व क्षमता से ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया था। अंग्रेजों की पकड़ में आने के बाद जेल में 9 जून, 1990 को उन्होंने आखिरी सांस ली । उनके जल, जंगल और जमीन की रक्षा के संघर्ष के नारे आज भी गूंजते हैं। बिरसा मुंडा का जन्म छोटा नागपुर पठार (अब झारखंड) में 15 नवम्बर, 1875 को हुआ था। 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गई।

अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई। इसमें अंग्रेजों की सेना हार गई। इसके बाद आदिवासी नेताओं की ताबड़तोड़ गिरफ्तारी हुई। जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर हुए संघर्ष में महिलाएं और बच्चे मारे गए। बिरसा को 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया गया।

09 जून, 1900 को अंग्रेजों ने उन्हें जहर देकर मार दिया। आज बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है। महानायक की समाधि रांची के कोकर में डिस्टिलरी पुल के पास है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। 10 नवंबर, 2021 को केंद्र सरकार ने 15 नवम्बर को बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

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