नेत्रदान की महत्ता को समझते हुए प्रत्येक वर्ष 10 जून को विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है। इसके जरिए नेत्रदान के प्रति जन चेतना फैलाई जाती है। लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आँखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना इस विशेष दिवस का उद्देश्य है। विकासशील देशों में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक दृष्टिहीनता है।
भारत में नेत्रदान करने वालों का आंकड़ा संतोषजनक नहीं है। देश में यह संख्या एक फीसदी से भी कम है। देश में प्रत्येक वर्ष 80 से 90 लाख लोगों की मृत्यु होती है लेकिन नेत्रदान 25 हजार के आसपास ही होता है। जबकि एक व्यक्ति मृत्यु के बाद चार लोगों की अंधेरी दुनिया में उजाला फैला सकता है। पहले दोनों आंखों से दो ही लोगों को कोर्निया मिल पाती थी, लेकिन नई तकनीक से एक आंख से दो कोर्निया प्रत्यारोपित की जा रही है। डी मेक से होने वाला यह प्रत्यारोपण देश के हर बड़े आंखों के अस्पताल में शुरू हो चुका है।
व्यक्ति की मृत्यु के छह घंटे तक ही कार्निया प्रयोग में लाई जा सकती है। आई बैंक एसोसियेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में अभी 25 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें कार्निया की जरूरत है। यह प्रक्रिया अत्यंत सरल है और महज 15-20 मिनट में ही पूरी हो जाती है। नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार आंखें कभी भी वृद्ध नहीं होतीं, इसलिए नेत्रदान की उम्र सीमा नहीं होती। एक वृद्ध व्यक्ति भी अपनी इच्छानुसार अपनी आंखें दान कर सकता है।