15 दिसंबर, 1950 का वह मनहूस दिन। देश के पहले उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की तबीयत काफी खराब थी और वे मुंबई में थे। सुबह तीन बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे बेहोश हो गए। चार घंटों बाद उन्हें थोड़ा होश आया। उन्होंने पानी मांगा। मणिबेन ने उन्हें गंगाजल में शहद मिलाकर चम्मच से पिलाया। रात 9 बजकर 37 मिनट पर सरदार पटेल ने आखिरी सांसें लीं।
31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा में पैदा हुए सरदार पटेल का देश की आजादी में जितना योगदान था, उससे कहीं ज्यादा उनकी भूमिका आजाद भारत को एक करने में थी। आजादी के समय देश में छोटी-बड़ी 562 रियासतें थीं। इनमें से कई रियासतों ने तो आजाद रहने का फैसला किया लेकिन सरदार पटेल ने इन सबको देश में मिलाया।
आजादी के बाद हैदराबाद और जूनागढ़ ने भारत में मिलने से मना कर दिया। इसके पीछे मोहम्मद अली जिन्ना की चाल थी, लेकिन हैदराबाद में सरदार पटेल ने सेना भेज कर वहां के निजाम का आत्मसमर्पण करवा लिया। वहीं, जूनागढ़ में जनता के विद्रोह से घबरा कर वहां का नवाब भाग कर पाकिस्तान चला गया। इसी तरह भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भी शर्त रखी कि वो आजाद रहेंगे या पाकिस्तान में मिल जाएंगे। इसके बाद सरदार पटेल की वजह से ही भोपाल के नवाब ने हार मान ली। 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बना।