इतिहास के पन्नों में 17 फरवरीः कोई नहीं भूल सकता अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले वासुदेव बलवंत फड़के को

देश-दुनिया के इतिहास में 17 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सशस्त्र क्रांति के प्रथम पुरुष वासुदेव बलवंत फडके से है। चार नवंबर, 1845 को जन्मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी फडके ने 17 फरवरी 1883 को आखिरी सांस ली थी। वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिन्हें आदि क्रांतिकारी कहा जाता है। वह ब्रिटिशकाल में किसानों की दयनीय दशा को देखकर विचलित हो उठे थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि ‘स्वराज’ ही इस रोग की दवा है। फडके का नाम सुनते ही युवकों में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत हो जाती थी।

उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र मार्ग का अनुसरण किया। फडके ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों को जागृत किया। महाराष्ट्र की कोल, भील और धांगड जातियों को एकत्र कर ‘रामोशी’ नाम का क्रांतिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के दौरान धन एकत्र करने के लिए उन्होंने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा। फडके को तब विशेष प्रसिद्धि मिली जब उन्होंने पुणे नगर को कुछ दिनों के लिए अपने नियंत्रण में ले लिया । 20 जुलाई 1879 को वे बीजापुर में पकड़े गए। अभियोग चला कर उन्हें काले पानी का दंड दिया गया। अत्याचार से दुर्बल होकर अंडमान के कारागृह में उनका देहांत हो गया।

चार नवंबर, 1879 को उनकी जयंती पर अमृत बाजार पत्रिका ने लिखा था –”उनमें वे सब महान विभूतियां समाहित थीं जो संसार में महत्कार्य सिद्धि के लिए भेजी जाती हैं। वे देवदूत थे। उनके व्यक्त्वि की ऊंचाई सामान्य मानव के मुकाबले सतपुड़ा और हिमालय से तुलना जैसी अनुभव होगी।” कहते हैं कि प्लासी युद्ध के 100 साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ असंतोष एक क्रांति के रूप में भड़कने लगा। इसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। यह सब फडके जैसे क्रांतिकारियों की वजह से संभव हो सका। सन 1770 से लेकर 1857 तक पूरे देश के रिकॉर्ड में अंग्रेजों के खिलाफ 235 क्रांति या आंदोलन हुए। 1770 में बंगाल का संन्यासी आन्दोलन की याद आते ही रूह कांप जाती है।अंग्रेजों की सेना ने 150 संन्यासियों को गोली मार दी थी।

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