इतिहास के पन्नों में 18 फरवरीः खय्याम का ख्याल आया तो याद आया-कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

देश-दुनिया के इतिहास में 18 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत के फिल्मी आकाश पर चमकते संगीतकार खय्याम (मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी) के जन्मदिन के रूप में दर्ज है। 18 फरवरी 1927 को जन्मे खय्याम साहब के जिंदगी की धुन 19 अगस्त 2019 को थम गई थी। उनके संगीत की धुनों पर सात दशक तक भारतीय सिनेमा गुनगुनाया है। थिरका है। रोया है। उनकी गिनती संगीत की दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के रूप में की जाती है। 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा था।

यह भी खास है कि खय्याम की रगों में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून भी था। संभवतः इसीलिए उन्होंने कुछ वक्त ब्रिटिश आर्मी की ओर से बतौर सिपाही बनकर द्वितीय विश्वयुद्ध में योगदान दिया। बाद में वह 1948 में अपने सपने को साकार करने मायानगरी जा पहुंचे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत फिल्म हीर राझां में बतौर म्यूजिक कंपोजर के तौर पर की थी।

संगीत की दुनिया के सरताज खय्याम ने उमराव जान और बाजार जैसी फिल्मों के हिंदी सिनेमा को अलग पहचान दी। ‘अकेले में वो घबराते तो होंगे, मिटा के हमको पछताते तो होंगे…’ यह फिल्म बीवी (1950) का मशहूर गीत है। मोहम्मद रफी की आवाज से सजे इस नगमे में खय्याम का संगीत था। इस गीत के संगीत ने ही खय्याम को संगीत की दुनिया में स्थापित किया।

खय्याम ने हिन्दी समेत पंजाबी गानों के लिए भी संगीत दिया है। खय्याम ने फिल्म शगुन, कभी-कभी, बाजार, उमराव जान, रजिया सुल्तान, शोला और शबनम, आखिरी खत, फिर सुबह होगी, नूरी, त्रिशूल, आहिस्ता आहिस्ता, दिल-ए-नादान और हीर रांझा जैसी फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया है।

उमराव जान (1981) का नगमा ‘इन आंखों की मस्ती में…’ युवाओं के दिलों में धड़क चुका है। इस गीत पर अभिनेत्री रेखा का नृत्य भी लाजवाब था। इस गीत को आशा भोसले ने आवाज दी थी। खय्याम साहब को इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। ‘दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए…।’ यह गाना हल्के संगीत से शुरू होता है। सितार की आवाज दिल थामने के लिए मजबूर कर देती है। जैसे- जैसे गीत आगे बढ़ता है, वैसै-वैसे ढोलक और पांव में बंधे घुंघरुओं की आवाज मदहोश करने लगती है।

फिल्म कभी-कभी का नगमा ‘मैं पल दो पल का शायर हूं …’ भी खय्याम के संगीत से सजा है। पूरा नगमा इस तरह है- मैं पल दो पल का शायर हूं/ कल और आएंगे नगमों की/खिलती कलियां चुनने वाले/मुझसे बेहतर कहने वाले/तुमसे बेहतर सुनने वाले/कल कोई मुझको याद करे/क्यूं कोई मुझको याद करे/मशरूफ जमाना मेरे लिए/क्यूं वक्त अपना बरबाद कर/ मैं पल दो पल का शायर हूं। गीत के इन शब्दों को ढालते हुए जो संगीत तैयार किया गया है उसमें कसक है। और ठहराव ऐसा जो शरीर में सिहरन पैदा कर ख्यालों में खो जाने को मजबूर करता है।

खय्याम के संगीत से गुंथा रजिया सुल्तान (1983) का ‘ए-दिले नादान…’ और आहिस्ता आहिस्ता (1980) का ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ गीत भी खूब गुनगुनाया गया। ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ में पीछे छूट गए जीवन के पल आंखों में तैर जाते हैं। खैय्याम के युग को हिन्दी सिनेमा के संगीत का स्वर्णिम कालखंड कहा जा सकता है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, ‘खय्याम ने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया। उनके अप्रतिम योगदान के लिए फिल्म और कला जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा।’

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