देश-दुनिया के इतिहास में 19 जुलाई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख उत्तर प्रदेश के इटावा में 04 जनवरी, 1925 को जन्मे प्रख्यात मंचीय कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज के अवसान के रूप में दर्ज है। 2018 में 19 जुलाई को अनंत की यात्रा पर चले गए। नीरज का बचपन अभावों में गुजरा।
शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया। उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लंबी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहां से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पांच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएं देकर 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक रहे।
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता की वजह से नीरज को फिल्म नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमंत्रण मिला। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा बेहद लोकप्रिय हुए। इसके बाद नीरज मुंबई में बस गए। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किंतु मुंबई की जिंदगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आए। नीरज ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अंतिम सांस ली।
उनका यह शेर आज भी मुशायरों में सुनाया जाता है-इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में। न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में। नीरज के रचना संसार का फलक इतना बड़ा है कि अपने चाहने वालों के दिलों में वे आजीवन जिंदा रहेंगे। उन्होंने अपने गीत ‘मेरा नाम लिया जाएगा’ में लिखा है-आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा, जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा, मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का, मैं तो आशिक रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का, लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस गलती के कारण,सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा…। उनका यादगार गीत है-‘कारवां गुजर गया’-स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे!, नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पांव जब तलक उठे कि जिन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख-शाख जल गई, चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई, गीत अश्क बन गए, छंद हो दफन गए, साथ के सभी दिऐ धुआं-धुआं पहन गये, और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके, उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे…।
नीरज लिखे जो खत तुझे…, ये भाई जरा देख के चलो…, मेघा छाए आधी रात… जैसे सदाबहार नगमों के वो रचयिता है। नीरज जब मंच से अपनी कविताएं सुनाते थे तो उनकी नशीली कविताएं और लरजती आवाज श्रोताओं को अपना दीवाना बना देती थी। अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ कर सारे शहर में बरसात हुई… सुनकर तो श्रोता सावन की तरह झूमते रहे हैं। फिल्म संसार में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए नीरज को 1970 के दशक में लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
केंद्र सरकार ने गोपाल दास नीरज को 1991 में पद्म श्री अलंकृत किया। 1994 में उन्हें यश भारती से नवाजा गया। 2007 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान प्रदान किया गया। उनकी प्रमुख कृतियों में संघर्ष, अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादर बरस गयो, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, लहर पुकारे, कारवां गुजर गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए और नीरज की गीतिकाएं हैं।