देश-दुनिया के इतिहास में 22 मार्च की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह साल 1769 की वही तारीख है जब दिल्ली की जनता खून के आंसू राई। दरअसल मार्च 1739 में फारस (अब ईरान) के बादशाह नादिरशाह ने भारत पर हमला कर दिया और करनाल में हुई लड़ाई में मुगलिया सेना की बुरी तरह से शिकस्त हुई थी। मुगलों की हार के बाद नादिरशाह का दिल्ली पर कब्जा हो गया।
नादिरशाह जब अपने लाव-लश्कर के साथ लाल किले पर पहुंचा तो दंगे भड़क गए और लोगों ने उसकी सेना के कई सिपाहियों को मार दिया। इससे गुस्साए नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम का हुक्म दिया और आज की पुरानी दिल्ली के कई इलाकों में उसकी फौज ने आम लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना को इतिहास में ‘कत्लेआम’ के तौर पर जाना जाता है।
सबसे खौफनाक कत्लेआम चांदनी चौक,लाल किला, दरीबा और जामा मस्जिद के आसपास के इलाके में हुआ। यहीं पर सबसे महंगी दुकानें और जौहरियों के घर थे। नादिरशाह के सैनिक घर-घर जाकर लोगों को मार रहे थे। कत्लेआम करते हुए वे लोगों का माल-असबाब लूट रहे थे और उनकी बहू-बेटियों को उठा ले रहे थे। बच्चे, बूढ़े किसी को भी नहीं छोड़ा।
सिपाहियों ने घरों में आग लगा दी। उसमें उन्होंने मृतकों को, घायलों को- चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, सबको जला डाला। यह कत्लेआम सुबह नौ बजे शुरू हुआ और दोपहर 2 बजे तक बेरोकटोक चलता रहा। तब के शहर कोतवाल के मुताबिक, इस कत्लेआम में 8000 लोग मारे गए थे।