देश-दुनिया के इतिहास में 23 मार्च की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख सारे देश में प्रखर समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती (23 मार्च, 1910) के रूप में जानी जाती है। उनका निधन 12 अक्टूबर, 1967 को दिल्ली में हुआ था। डॉ. लोहिया का जीवन एक व्यावहारिक और परिपूर्ण लोकतंत्र का जीवंत प्रतिमान है। साठ के दशक के बाद विकेंद्रीकरण राजनीति और युवा राजनीतिज्ञों के वह आदर्श बन गए और आज उनके कामकाज का हर ढर्रा एक स्वस्थ जनतंत्र की व्याख्या करता है।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण वर्ष 1963 में मिलता है। बात यह है कि संसद में तीन आना बनाम 15 आना के मुद्दे पर बहस चल रही थी। सरकार द्वारा निर्धारित एक दिन में प्रति व्यक्ति आय 15 आना के विषय पर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। डॉ. लोहिया ने कहा यह आंकड़ा सुधार लिया जाए। भारत की 60 फीसदी जनता की प्रति व्यक्ति आय महज तीन आना रोजाना है। उन्होंने तथ्यों का हवाला देते हुए लंबा और रोचक भाषण दिया। इसके बाद संसद में नेहरू मंत्रिमंडल के समक्ष काफी बौद्धिक चर्चा हुई। इसे संसद में अब तक की सबसे स्वस्थ बहस माना जाता है।
बहुत कम लोगों को ही जानकारी है कि तीन आना का सिद्धांत डॉ. लोहिया को काशी ने दिया था। शतरुद्र प्रकाश की पुस्तक ‘बनारस और डॉ. लोहिया’ के अनुसार महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के तात्कालिक अर्थशास्त्री कृष्णनाथ ने लोहिया के साथ मिलकर इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। काशी विद्यापीठ के संस्थापक सचिव पं. विश्वनाथ शर्मा का घर समाजवादियों के लिए आश्रम की तरह से था। यहीं पर कृष्णनाथ से उन्होंने तीन आने प्रति व्यक्ति आय की रूपरेखा तैयार कर उसपर विचार-मंथन किया था, जिसके बाद लोहिया ने सरकार के 15 आना वाले तर्क के सामने सदन में इसे प्रस्तुत कर दिया। कहा कि हिंदुस्तान के 27 करोड़ लोग इतने कम पैसे पर अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं और सरकार इससे बेखबर है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू समेत सदन के हर नेता लोहिया के इस ऐतिहासिक भाषण पर निरुत्तर हो गए।