‘ओम जय जगदीश हरे’ जैसी श्रद्धा से भरी अमर आरती की रचना करने वाले पंडित श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी का 24 जून 1881 को लाहौर में निधन हो गया। 1870 में उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में इस आरती की रचना की थी।
सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी व पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया। यही चेतना व उत्साह आगे चलकर आर्य समाज के लिये उर्वर भूमि के रूप में विकसित हुआ।
पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जालंधर स्थित फिल्लौर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही धार्मिक संस्कार मिले थे। उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढ़ाई की। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फारसी तथा ज्योतिष की पढ़ाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों में दक्ष हो गए।
पं. श्रद्धाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी पुस्तकें लिखीं। अपनी पहली ही किताब ‘सिखों दे राज दी विथिया’ से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। 1877 में उनका लिखा उपन्यास- भाग्यवती प्रकाशित हुआ, जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है। उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उद्धरण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जनमानस के बीच वातावरण तैयार किया।