वैश्विक इतिहास में 27 जून को कई कारणों से जाना जाता है। यह तारीख भारतीय सिनेमा के लिए भी महत्वपूर्ण है। 27 जून, 2015 को भारतीय सिनेमा के इतिहास में खास मुकाम रखने वाले सत्यजीत रे की तस्वीर को संयुक्त राष्ट्र ने अपने मुख्यालय में प्रदर्शित करने का फैसला किया था। इस प्रदर्शनी में रे के साथ फैबरिजियो रुगिरो और नीना मुज्जी की कलाकृति को भी शामिल किया गया था। सत्यजीत रे को 1992 में मानद ऑस्कर मिला था। इसी साल उन्हें भारत के शीर्ष नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।
सत्यजीत रे की पहली ही फिल्म को तकरीबन एक दर्जन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया था। वे चार्ली चैप्लिन के बाद सिनेमा से जुड़े अकेले ऐसे शख्स थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया। रे कांस ,वेनिस ,बर्लिन और ऑस्कर सरीखे दुनिया के प्रतिष्ठित फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वाले अकेले भारतीय फिल्मकार हैं। उन्हें 32 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। ‘भारत रत्न’ पाने वाले वे अबतक के एकमात्र फिल्म निर्देशक हैं।
यह मुख्तसर सा बायोडाटा रे को सबसे अलग करता है। 1955 में फिल्म ‘पथेर पांचाली’ से शुरू हुआ उनका सिनेमाई सफर आखिरी फिल्म ‘आगंतुक’ (1992) तक कुल 37 फिल्मों का है। दिलचस्प यह है कि ‘पथेर पांचाली’ बनाने से पहले रे के पास न तो फिल्म निर्माण का कोई अनुभव था और न ही यथार्थवादी फिल्मों का कोई बेहतर भारतीय प्रतिमान सामने था। सत्यजित रे इस मायने में भी अलग हैं कि उनकी फिल्मों का कलेवर ‘ललित कलाओं के कोलाज’ सरीखा होता था। शायद यही वजह है कि मशहूर अमेरिकी फिल्म निर्देशक मार्टिन स्कॉर्सेसी ने कहा था –“रे की फिल्मों में काव्य और सिनेमा को मिलाने वाली रेखा एक दूसरे में घुलीमिली सी नजर आती है।”
इसके अलावा 27 जून, 1964 को यह फैसला किया गया था कि दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संग्रहालय बनाया जाएगा। दरअसल इसी तीन मूर्ति भवन में नेहरू का आवास था। उनकी मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में इसे संग्रहालय में बदल दिया गया। इसके अलावा वर्ष 1957 में 27 जून को ही ब्रिटेन की मेडिकल रिसर्च काउंसिल ने 25 वर्ष के शोध के आधार पर एक रिपोर्ट जारी कर यह बताया था कि धूम्रपान की वजह से फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।