इतिहास के पन्नों में 31 अक्टूबरः सरदार पटेल जो कर गए, उसे सदियां याद रखेंगी

देश-दुनिया के इतिहास में 31 अक्टूबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। भारतीय इतिहास में यह तारीख अच्छी और बुरी दोनों तरह की घटना के रूप में दर्ज है। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को मनाई जाती है। दूसरा यह तारीख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की भी गवाह है।

वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में जन्मे सरदार ने अंतिम सांस 15 दिसंबर. 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है।

आज 10वीं की परीक्षा आमतौर पर 15-16 साल की उम्र में बच्चे पास करते हैं। सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की थी। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया।

देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप प्रधानमंत्री बने। देश के प्रथम गृहमंत्री के रूप में ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी पटेल को जाता है। गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है। इस सरदार पटेल की याद में स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर, 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का अनावरण किया था।

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अब बात इंदिरा गांधी की। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर, 1984 को ओडिशा से चुनाव प्रचार कर दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था।

इंदिरा गांधी ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय प्रधानमंत्री आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले जाया गया। शरीर से लगातार खून बह रहा था।

एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया गया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।

एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। दरअसल पंजाब में आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने पांच जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया था। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी, 1989 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।

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