देश के आठवें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर का 8 जुलाई 2007 को नई दिल्ली में निधन हो गया। वे 3 माह 24 दिन ही प्रधानमंत्री के पद पर रहे। राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगा कर कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया। अल्पमत में आने के बाद चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इतने कम समय के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में और एक राष्ट्रीय नेता के रूप में चंद्रशेखर का व्यापक सार्वजनिक जीवन भारतीय राजनीति के लिए उदाहरण बना।
प्रधानमंत्री का पद छोड़ने की घड़ी में भी चंद्रशेखर अपने फैसले पर डंवाडोल नहीं हुए। दरअसल, जब कांग्रेस की तरफ से राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगा कर चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस लेने की बात चल रही थी तो चंद्रशेखर के पास राजीव गांधी का संदेश लेकर शरद पवार पहुंचे। शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखा कि उन्होंने चंद्रशेखर से कहा कि `कुछ गलतफहमी हुई है और कांग्रेस नहीं चाहती कि आपकी सरकार गिरे…आप इस्तीफा वापस ले लें, हम चाहते हैं कि आप अपने पद पर बने रहें।’
शरद पवार की इस पेशकश पर चंद्रशेखर ने तल्ख भरे लहजे में कहा, `आप प्रधानमंत्री पद का कैसे इस तरह उपहास कर सकते हैं। क्या कांग्रेस वास्तव में यह मानती है कि मैं राजीव की जासूसी के लिए सिपाही भेजूंगा। जाओ उनसे कह दो कि चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता।’