कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार ने शनिवार से पंचायत क्षेत्रों में रहने वाले राज्य की ग्रामीण आबादी की नब्ज टटोलने के लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण शुरू किया है। इसका उद्देश्य राज्य सरकार की ओर से पंचायत क्षेत्रों में प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं से संबंधित योजनाओं के बारे में आम लोगों के रुख को समझना है। सर्वेक्षण एक महीने की अवधि के दौरान किया जाएगा, जहां राज्य सरकार के कर्मचारियों को लेकर बनी सर्वेक्षणकर्ताओं की एक टीम 72 प्रश्नों के एक सेट के साथ घर-घर जाएगी।
यह पिछले 11 वर्षों में पहली बार है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार राज्य में पंचायत चुनावों के लिए इस तरह का सर्वेक्षण कर रही है। 2021 से पहले कुछ इसी तरह का सर्वे किया गया था। लेकिन वह सर्वेक्षण चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपैक) द्वारा किया गया था। लेकिन इस बार राज्य सरकार की ओर से अधिकारियों और कर्मचारियों की अपनी टीम के जरिए सर्वे कराया जा रहा है।
सर्वे में 72 सवालों के सेट में कृषि क्षेत्र पर फोकस किया गया है। सवाल यह है कि क्या किसानों को उनकी उपज के लिए राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिल रहा है? सवाल यह भी है कि क्या किसानों को अपनी उपज के प्रदर्शन और विपणन के लिए मंच मिल रहा है।
राज्य सरकार इस सर्वेक्षण के माध्यम से पंचायत क्षेत्रों में रहने वाले उन परिवारों की संख्या के बारे में भी स्पष्ट आंकड़ा चाहती है जो खाद्य सुरक्षा योजना से छूट गए हैं। वह यह भी जानना चाहती है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत किसे अभी तक जॉब कार्ड नहीं मिले हैं और उन्हें इसी अधिनियम के तहत नियमित आधार पर मजदूरी मिल रही है या नहीं?
आवास क्षेत्र में सर्वेक्षण यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आवास योजनाओं के लिए सूचीबद्ध कोई लाभार्थी छूट गया है। शिक्षा क्षेत्र में, सर्वेक्षण हाल के दिनों में स्कूल छोड़ने वालों की संख्या का पता लगाने की कोशिश करेगा और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या छात्राओं की संख्या में कोई वृद्धि हुई है या नहीं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में अगले साल त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने हैं जिसमें स्थानीय मुद्दे प्रमुख कारक होंगे जो मतदाताओं के मूड को निर्धारित करेंगे।