देश-दुनिया के इतिहास में 22 मई कई कारणों से स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इनमें एवरेस्ट को चूमने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल के साथ और तमाम महत्वपूर्ण घटनाक्रम शामिल हैं। उन्होंने 1984 में 22 मई को विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरस्ट पर आरोहण कर इतिहास रचा। वह दो बार माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा चुकी हैं । 24 मई, 1954 को गढ़वाल (उत्तराखंड) के छोटे से गांव में पिता किशनलाल और मां हंसा देवी के घर जन्म लेने वालीं बछेंद्री को बचपन से ही पर्वतारोहण का शौक था। मगर घरवाले इसके खिलाफ थे। पिता का नाम किशनपाल सिंह और माता का नाम हंसा देवी था । किशनपाल अपने पांच बच्चों के पालन-पोषण करने के लिए गेहूं , चावल और किराने के सामान को खच्चरों पर लादकर तिब्बत ले जाते थे। वहां से तिब्बती सामान लाकर गढ़वाल में बेचते थे । बछेंद्री 12 वर्ष की उम्र में स्कूल की पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की ऊंचाई पर बिना थके चढ़ गई थीं । इसके बाद बाकी सहपाठी पहुंचे। इस बीच मौसम अचानक खराब हो गया। सभी को बिना भोजन-पानी के चोटी पर ही रात गुजारनी पड़ी । इस घटना से उनके मन में पर्वतों के प्रति प्रेम और ज्यादा बढ़ गया । बछेंद्री को परिवार मैट्रिक से आगे नहीं पढ़ाना चाहता था। मगर उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया। निशानेबाजी सीखी। इस प्रतियोगिता में भी विजय प्राप्त की । बछेंद्री पाल ने स्नातकोत्तर करने के बाद बीएड की परीक्षा भी पास की ।
बालमन में दिल में उमड़ा पहाड़ प्रेम घर के विरोध के बावजूद बछेंद्री को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाया। बछेंद्री ने उत्तराकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में प्रवेश लिया । बछेंद्री को शानदार प्रदर्शन के लिए इंस्टीट्यूट की सर्वश्रेष्ठ छात्रा घोषित किया गया । प्रशिक्षण के दौरान बछेंद्री पाल ने 1982 में 21,900 फीट ऊंचे गंगोत्री शिखर और 19,091 फीट ऊंचे रदूगरिया शिखर पर सफलतापूर्वक आरोहण किया। उन्होंने इसके बाद महिलाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्ष्ण दिया और खुद को मानसिक तौर पर एवरेस्ट विजय के लिए तैयार किया। भारत ने 1984 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले अभियान दल में बछेंद्री पाल का चयन किया। इस दल में 11 पुरुष और छह महिलाएं थीं । इसी साल मई में यह भारतीय दल नेपाल से एवरेस्ट विजय करने के शिखर अभियान पर निकला। 15/16 मई की दरमियानी रात यह दल 24 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचा। यहां दल ने टेंटों में आराम करने का फैसला किया। कुछ देरबाद जोरदार धमाके की आवाज से सभी की नींद टूट गई। सब टेंट से बाहर आ गए। नजारा देककर सबका कलेजा फटने को आ गया। पूरा शिविर चारों ओर बर्फ से ढक गया था। शिविर के ऊपर हिमखंड टूटकर कर बिखर चुका था। इसके बाद इन लोगों ने चाकुओं से बर्फ को काटकर बाहर निकलने का रास्ता बनाया। बछेंद्री के अलावा बाकी सदस्यों ने नीचे बेस कैंप लौटने का फैसला किया। वह नए पर्वतारोही दल के साथ हो लीं। इस दल में वह अकेली महिला थीं। 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही बर्फीली हवा के झोंको के बीच बछेंद्री पाल ने सीधी चढ़ाई जारी रखी । इस ऊंचाई पर तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस था। वह जिद, जज्बा और जुनून की बदौलत बर्फ को चीरते हुए ऊंचाई चढ़ती रहीं। 22 मई, 1984 को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट चोटी पर पहुंचकर इतिहास रचा। इस शिखर पर एक समय में केवल दो व्यक्ति ही रुक सकते थे, क्योंकि चारों ओर हजारों फीट गहरी खाई थी। यहां बछेंद्री ने बर्फ में अपनी कुल्हाड़ी गाड़कर खुद को स्थिर किया और घुटनों के बल बैठकर ईश्वर को अपना सपना पूरा करने के लिए धन्यवाद दिया । यह वह तिथि है जब बछेंद्री एवरेस्ट का शिखर चूमने वाली पहली भारतीय और विश्व की पांचवीं महिला बनीं। हालांकि इसके बाद 1993 में भी बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया।