देश-दुनिया के इतिहास में 22 जून की तारीख कई अहम घटनाओं के लिए स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इसी तारीख को 1939 में भारतीय स्वाधीनता संग्राम सेनानी, भारत रत्न और आजादी की लड़ाई में प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया था। नेताजी का जन्म पिता जानकी नाथ बोस और माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। वे अपने आठ भाइयों और छह बहनों में नौवीं संतान थे। वह स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थे।
पिता अपने बेटे को सिविल सेवा के पदाधिकारी के रूप में देखना चाहते थे। पिता का सपना पूरा करने के लिए सुभाष ने सिविल सेवा की परीक्षा दी ही नहीं अपितु उस परीक्षा में चौथा पायदान भी हासिल किया। लेकिन उस समय सुभाष के मन में कुछ और ही चल रहा था। 1921 में देश में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों के समाचार पाकर एवं ब्रिटिश हुकूमत के अधीन अंग्रेजों की हां-हूजूरी न करने की बजाय उन्होंने महर्षि अरविन्द घोष की भांति विदेशों की सिविल सेवा की नौकरी को ठोकर मारकर मां भारती की सेवा करने की ठानी और भारत लौट आए थे।
स्वदेश लौटने पर नेताजी अपने राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास से न मिलकर गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर महात्मा गांधी से मिले। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी सुभाष के हिंसावादी व उग्र विचारधारा से असहमत थे। बेशक महात्मा गांधी और नेताजी की विचारधारा भिन्न-भिन्न थी, पर दोनों का मकसद एक ही था ‘भारत की आजादी’। सच्चाई है कि महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी ने ‘राष्ट्रपिता’ संबोधित किया था। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद नेताजी ने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। कहा जाता है कि यह आयोग गांधीवादी आर्थिक विचारों के प्रतिकूल था।
रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण में नेताजी ने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ और ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। सक्रिय राजनीति में आने व आजाद हिन्द फौज की स्थापना से पहले बोस ने सन 1933 से 1936 तक यूरोप महाद्वीप का दौरा भी किया । बोस ने कूटनीतिक व सैन्य सहयोग की अपेक्षा खातिर हिटलर से मित्रवत नाता भी कायम किया। साथ ही 1937 में ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी भी की और दोनों की अनीता नाम की एक बेटी भी हुई। अधिकांश लोग ये मानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद दक्षिण-पूर्वी एशिया से भागते हुए एक हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त,1945 को नेताजी की मृत्यु हो गई। एक मान्यता यह भी है कि बोस की मौत 1945 में नहीं हुई, वह उसके बाद रूस में नजरबंद थे। उनके गुमशुदा होने और दुर्घटना में मारे जाने के बारे में कई विवाद छिड़े, लेकिन सच कभी सामने नहीं आया। हालांकि एक साक्षात्कार में नेताजी की बेटी अनीता बोस ने कहा था कि उन्हें इस बात पर पूरा यकीन है कि उनके पिता की मौत दुर्भाग्यपूर्ण विमान हादसे में हो गई।