इतिहास के पन्नों में: 24 जून – आरती जो आराधना का मानक बन गई

पूजा-पाठ में जरा भी आस्था रखने वाला व्यक्ति जन-जन में लोकप्रिय आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ से अनभिज्ञ नहीं होगा। 1870 में रची गई यह आरती आज भी उतनी ही श्रद्धा के साथ गायी जाती है। इसके रचयिता थे- धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजसेवी, हिंदी व पंजाबी के साहित्यकार पंडित श्रद्धाराम शर्मा। 1837 में पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर में पैदा हुए पंडित श्रद्धाराम शर्मा को इसी वजह से फिल्लौरी नाम से भी जाना जाता है। उनका देहांत पाकिस्तान के लाहौर (तब भारत) में 24 जून 1881 को हो गया।

बालक श्रद्धाराम को धार्मिक संस्कार विरासत में मिले। सात वर्ष की उम्र तक उन्होंने गुरुमुखी में पढ़ाई की और बाद में संस्कृत, हिंदी, फारसी और ज्योतिष का गहन अध्ययन किया। उन्होंने 33 साल की उम्र में ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती की रचना की जो देखते ही देखते कालजयी बन गई। उन्हें तब धार्मिक व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा जहां बड़ी संख्या में लोग उनसे यह आरती सुनाने की मांग करते। इस आरती की लोकप्रियता का अंदाजा हिंदी फिल्म उद्योग को था इसलिए मनोज कुमार की फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में इस आरती को शामिल किया गया, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया।

पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने गुरुमुखी में ‘सिक्खां दे राज दी विथियां’ जैसी अमर कृति भी लिखी जिसके तीन अध्यायों में सिख धर्म की स्थापना व इसकी नीतियों को सारगर्भित रूप से बताया गया है। ब्रिटिश सरकार ने उस समय आईसीएस (जिसका भारतीय नाम आईएएस) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।

हालांकि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उन्होंने महाभारत का उल्लेख करते हुए उसे उखाड़ फेंकने का जनजागरण अभियान चलाया। जिससे नाराज होकर 1865 में उन्हें फुल्लौरी से निष्कासित कर आसपास के गांवों में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ शिक्षा और महिला अधिकारों के प्रहरी के तौर पर भी पंडित श्रद्धाराम शर्मा को याद किया जाता है।

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