इतिहास के पन्नों में 29 जूनः बरकरार है उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री का ‘तिलिस्म

इतिहास में 29 जून का महत्व तमाम वैश्विक घटनाओं के लिए है। इस तारीख को भारत में हिंदी के उपान्यासों में तिलिस्म पैदा करने वाले ‘जनक’ के रूप में भी याद किया जाता है। हिंदी के पहले तिलिस्मी लेखक देवकीनंदन खत्री हैं। उनका जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा 29 जून, 1861 में हुआ था। उन्होंने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर खून, भूतनाथ जैसी कालजयी रचनाएं की। ‘भूतनाथ’ को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का अहम योगदान है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस उपन्यास के रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने ‘तिलिस्म’, ऐय्यार’ और ‘ऐय्यारी’ जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। जितने हिन्दी पाठक उन्होंने उत्पन्न किए उतने आज तक किसी और ग्रंथकार ने नहीं किए। देवकीनंदन खत्री को आधुनिक हिंदी उपन्यासकारों की पहली पीढ़ी माना जाता है। ‘चंद्रकांता’ के चरित्र को गढ़ने वाले देवकीनंदन खत्री ने हिन्दी उपन्यास लेखन के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया। उन्हें हिंदी में रहस्य-रोमांच से भरपूर उपन्यासों का पहला लेखक माना जाता है।

उनके पिता लाला ईश्वर दास धनी व्यापारी थे। उनके पूर्वज मुगल शासन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाला ईश्वरदास काशी में आकर बस गए थे। घर में संपन्नता के कारण देवकीनंदन खत्री का बचपन खुशनुमा माहौल में बीता। देवकीनंदन खत्री की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने बनारस में हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण रियासतों के शासकों में उनके कई दोस्त थे। इसके अलावा फकीर, औलिया और तांत्रिकों से भी उनकी अच्छी दोस्ती थी।

प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह गया में टेकरी एस्टेट चले गए। बाद में उन्होंने वाराणसी में ‘लहरी’ नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की और 1898 में हिंदी मासिक ‘सुदर्शन’ का प्रकाशन आरंभ किया। बीसवीं सदी की शुरुआत में देवकी नंदन खत्री और उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद की कई रचनाओं को ‘लहरी’ प्रेस से दुबारा प्रकाशित किया गया। देवकीनंदन खत्री बचपन से ही सैर-सपाटे के बहुत शौकीन थे। वो चकिया और नौगढ़ के बीहड़ों, जंगलों, पहाड़ियों और ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों में घूमा करते थे। बाद में इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की पृष्ठभूमि में अपनी तिलिस्मी और ऐयारी कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने ‘चंद्रकांता’ उपन्यास की रचना की। यह उपन्यास उन्होंने उन्नीसवीं सदी के अंत में लिखा। इस उपन्यास ने देवकीनंदन खत्री को मशहूर बना दिया। इस उपन्यास पर ‘चंद्रकांता’ नाम से टेलीविजन धारावाहिक भी बनाया गया। यह बेहद लोकप्रिय रहा। यह धारावाहिक 1994 और 1996 के बीच दूरदर्शन में प्रसारित हुआ। इस उपन्यास की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसी कथा को आगे बढ़ाते हुए दूसरा उपन्यास ‘चंद्रकांता संतति’ भी लिखा। यह ‘चंद्रकांता’ की अपेक्षा कई गुना रोचक रहा। यह उपन्यास भी अत्यंत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने 01 अगस्त, 1913 को आखिरी सांस ली।

इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक नियोजन और नीति तैयार करने में सांख्यिकी के महत्व के बारे में जन जागरुकता पैदा करने के वास्ते भारत में हर वर्ष 29 जून को राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत के प्रख्यात सांख्यिकीविद प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।

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