- उद्धव ठाकरे ने दिया इस्तीफ़ा
नयी दिल्ली : महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट पर राज्यपाल द्वारा गुरुवार को विधानसभा में उद्धव ठाकरे सरकार को बहुमत साबित करने के लिए फ़्लोर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के थोड़ी देर बाद उद्धव ने फेसबुक लाइव कर जनता को एक भावनात्मक संदेश दिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी।
इससे पहले रात 9 बजे फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाले बेंच ने कहा कि हम इस मामले के गुण-दोषों के आधार पर 11 जुलाई को सुनवाई करेंगे।
सुनवाई के दौरान शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि फ्लोर टेस्ट बहुमत जानने के लिए होता है। इसमें इस बात की उपेक्षा नहीं कर सकते कि कौन वोट डालने के योग्य है और कौन नहीं। उन्होंने कहा कि स्पीकर के फैसले से पहले वोटिंग नहीं होनी चाहिए। उनके फैसले के बाद सदन सदस्यों की संख्या बदलेगी। सिंघवी ने कहा कि कोर्ट ने अयोग्यता के मसले पर 11 जुलाई तक के लिए सुनवाई टाली है। उससे पहले फ्लोर टेस्ट गलत है। तब कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि फ्लोर टेस्ट कब करवा सकते हैं, इसे लेकर क्या कोई नियम है। तब सिंघवी ने कहा कि आमतौर पर 2 फ्लोर टेस्ट में 6 महीने का अंतर होता है। इसलिए, अभी फ्लोर टेस्ट कुछ दिनों के लिए टाल देना चाहिए।
सिंघवी ने कहा कि 21 जून को ही ये विधायक अयोग्य हो चुके हैं। तब कोर्ट ने पूछा कि अगर स्पीकर ने अभी तक यही फैसला ले लिया होता तो स्थिति अलग होती। डिप्टी स्पीकर के पास बहुमत होना खुद ही विवादित है। इसलिए, अयोग्यता के मसले पर सुनवाई टाली गई है। तब सिंघवी ने कहा कि जो लोग 21 जून से अयोग्य हो चुके हैं, उनके वोट के आधार पर सरकार का सत्ता से बाहर होना गलत है। सिंघवी ने कहा कि इन लोगों को वोट डालने देना लोकतंत्र की जड़ों को काटना होगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट के लिए मंत्रिमंडल से सलाह नहीं ली। जल्दबाजी में निर्णय लिया है। जब कोर्ट ने सुनवाई 11 जुलाई के लिए टाली तो इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था।
सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने 34 विधायकों की चिट्ठी की पुष्टि की कोशिश नहीं की। विपक्ष के नेता राज्यपाल से मिले, फिर उन्होंने फ्लोर टेस्ट के लिए कह दिया। तब कोर्ट ने कहा कि लेकिन राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल कैसे करें, यह कैसे तय किया जा सकता है। बहुमत तो सिर्फ फ्लोर पर ही परखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार ने बहुमत खो दिया है और कुछ विधायकों को स्पीकर के जरिए अयोग्य करार देने की कोशिश कर रही है, तो राज्यपाल को क्या करना चाहिए। तब सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल बीमार थे। अस्पताल से बाहर आने के दो दिन के भीतर विपक्ष के नेता से मिले और फ्लोर टेस्ट का फैसला ले लिया। सिंघवी ने कहा कि जिन लोगों ने पाला बदल लिया, वह लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। आसमान नहीं टूट पड़ेगा, अगर कल फ्लोर टेस्ट न हुआ तो। तब कोर्ट ने पूछा कि क्या यह लोग विपक्ष की सरकार बनवाना चाहते हैं। तब सिंघवी ने कहा कि जी, चिट्ठी में उन्होंने यही लिखा है।