भारत और विश्व इतिहास में 14 जुलाई का खास महत्व है। इस तारीख को कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। यह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हैं। 2011 में 14 जुलाई को ही बोर्नियो में वैज्ञानिकों ने विलुप्त इंद्रधनुष को पहली बार देखने और खोजने का दावा किया था। इस इंद्रधनुष को 1924 में विलुप्त घोषित किया गया था। दरअसल इंद्रधनुष को हर कोई देखना चाहता है। आसमान में संध्या समय पूर्व दिशा में और सुबह पश्चिम दिशा में वर्षा के पश्चात लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी वर्णों का विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। इसे इंद्रधनुष कहते हैं।
वर्षा और बादल में पानी की सूक्ष्म बूंदों अथवा कणों पर पड़नेवाली सूर्य किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण है। सूर्य की किरणें वर्षा की बूंदों से अपवर्तित और परावर्तित होकर इंद्रधनुष बनाती हैं। इंद्रधनुष सदा दर्शक की पीठ के पीछे सूर्य होने पर ही दिखाई पड़ता है। इंद्रधनुष पूर्ण वृत्त रूप में भी हो सकते हैं। एक इंद्रधनुष ऐसा भी बनना संभव है, जिसमें वक्र का बाहरी वर्ण बैंगनी और भीतरी लाल हो। इसको द्वितीयक इंद्रधनुष कहते हैं। तीन और चार आंतरिक परावर्तन से बने इंद्रधनुष भी संभव हैं। परंतु वह बिरले अवसरों पर ही दिखाई देते हैं। वे सदैव सूर्य की दिशा में बनते हैं और तभी दिखाई देते हैं जब सूर्य बादलों में छिपा रहता है। इंद्रधनुष बनने के सिद्धांत को सबसे पहले फ्रेंच वैज्ञानिक दे कार्ते ने समझाया था।