गोपीनाथ बारदोलोई असम के न केवल पहले मुख्यमंत्री थे बल्कि उन्होंने पूर्वोत्तर में स्वतंत्रता की लौ जलाए रखने में अहम योगदान दिया। इतना ही नहीं, जिन्ना की साजिश के चलते असम, पाकिस्तान का हिस्सा बनने वाला था लेकिन गोपीनाथ बारदोलोई ने इस मंशा पर पानी फेर दिया।
06 जून 1890 को असम के नागांव जिले के राहा गांव में पैदा हुए गोपीनाथ बारदोलोई ने स्नातकोत्तर किया और कानून की पढ़ाई की। 1922 में सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। कई बार जेल गए। 1946 में असम में जब अंतरिम सरकार बनी, बारदोलोई मुख्यमंत्री बनाए गए।
देश की आजादी और बंटवारे को लेकर बहुत कुछ साफ हो चुका था। जिन्ना असम को पाकिस्तान में मिलाने की हसरत पाल रहे थे। जिसे बारदोलोई ने समय रहते भांप लिया और एक अधिकार संपन्न प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भेजा। जिसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सक्रिय हुए और जिन्ना का प्लान फेल हुआ। इससे खुश होकर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बारदोलोई को शेर-ए-असम की उपाधि दी।
देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान से जान बचाकर आ रहे लाखों हिंदू शरणार्थियों को असम में उन्होंने बहुत कुशलता के साथ संभाला। उन्हें आधुनिक असम का निर्माता भी कहा जाता है। राज्य में उन्होंने जिस बड़े स्तर पर विश्वविद्यालय, अस्पताल सहित दूसरी सुविधाओं को कम समय में संभव बनाया, उसकी हमेशा से प्रशंसा होती रही है। उन्हें कुछ दशक और मिले होते तो वे इस मोर्चे पर कई मिसाल बना सकते थे। 05 अगस्त 1950 को उनका निधन हो गया। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।