भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद के एक कुलीन परिवार में हुआ था। विक्रम के आठ भाई-बहन थे। उनके पिता अंबालाल साराभाई बड़े कपड़ा व्यवसायी और गांधीवादी विचारधारा के थे।
डॉ. विक्रम साराभाई भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे। उनकी अगुवाई में 21 नवंबर, 1963 में तिरुवनंतपुरम (केरल) के थुंबा गांव से देश का पहला रॉकेट लॉन्च किया गया। यह उनकी दूरदर्शिता की वजह से ही संभव हो सका, क्योंकि थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्च पर कोई इमारत नहीं थी। इसलिए वहां के तत्कालीन बिशप की अनुमति से चर्च को कंट्रोल रूम का रूप दिया गया। आज इसे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के रूप में जाना जाता है।
साल 1975 की 19 अप्रैल की वह तारीख भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पूरी दुनिया को हैरान करते हुए अपने पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इस मुकाम को हासिल करने में महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की अतुलनीय भूमिका रही।
डॉ. विक्रम साराभाई, गुजरात कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1937 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। वहां उन्होंने नेचुरल साइंस में दाखिला लिया। दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्हें भारत लौटना पड़ा। यहां उन्होंने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में काम करना शुरू कर दिया और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सीवी रमन की निगरानी में कॉस्मिक रे पर शोध करने लगे। साल 1917 में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की।
अहमदाबाद के शाहीबाग में विक्रम साराभाई का एक छोटा सा बंगला था। इसके एक कमरे में उन्होंने फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) पर काम शुरू कर दिया। साराभाई ने पीआरएल की शुरुआत 1947 में की और देश की आजादी के बाद उन्होंने इसे नई ऊंचाई देने के लिए कड़ी मेहनत की। 1952 में उनके गुरु सीवी रमन ने नए पीआरएल कैम्पस की नींव रखी। यह विक्रम साराभाई के अथक प्रयास का ही नतीजा है कि आज यह संस्थान अंतरिक्ष और इससे संबंधित विज्ञान के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित संस्थान माना जाता है।
डॉ. विक्रम साराभाई ने सिर्फ 28 साल की उम्र में सरकार के सामने एक स्पेस एजेंसी स्थापित करने की वकालत शुरू कर दी। इसी दौरान रूस ने स्पुतनिक को सफलतापूर्वक लॉन्च किया और इसके बाद उन्होंने भारत सरकार को आश्वस्त किया कि भारत जैसा विकासशील देश भी चंद्रमा पर जा सकता है। इस तरह 1959 में इसरो की स्थापना हुई। इसे लेकर उन्होंने कहा था, “कुछ लोग विकासशील देशों की स्पेस एक्टिविटी को लेकर सवाल उठाते हैं लेकिन हम अपने उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट हैं। हमारी चंद्रमा या ग्रहों की खोज या मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान में विकसित देशों की प्रतिस्पर्धा करने की चाह नहीं है लेकिन हमारा मानना है कि देश की समस्याओं को उन्नत तकनीकों के जरिए हल करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए।”
देश के पहले रॉकेट को लॉन्च करने वालों में एपीजे अब्दुल कलाम भी युवा वैज्ञानिक के रूप में शामिल थे। डॉ विक्रम साराभाई ने उन्हें निखारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1966 में एक विमान दुर्घटना में डॉ. होमी जहांगीर भाभा की मौत के बाद विक्रम साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष चुना गया। इसके ठीक बाद उन्होंने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (एसआईटीई) को लेकर संवाद शुरू किया। उन्हीं के प्रयासों के कारण 1975 में एसआईटीई लॉन्च हुआ। यह भारत और अमेरिका के बीच स्पेस साइंस के क्षेत्र में पहली बड़ी साझेदारी थी। यह देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तकनीक के इस्तेमाल का पहला प्रयास भी था। यह भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे निर्णायक मोड़ है।
देश के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संगठनों को स्थापित करने के अलावा देश के सबसे सफल आईआईएम संस्थानों में शुमार भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद को भी शुरू करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। देश के प्रति उनके समर्पण और योगदान के लिए उन्हें 1962 में शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार, 1966 में पद्मभूषण और 1972 (मरणोपरांत) में पद्मविभूषण सम्मान प्रदान किया गया।