कोलकाता : बसों के किराए में बढ़ोतरी संबंधी नियम के बारे में हाईकोर्ट के बार-बार पूछे जाने के बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार संतोषजनक जवाब नहीं दे रही। इसे लेकर बुधवार को कोर्ट ने राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया गया है। खंडपीठ के दोनों जजों ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या राज्य के पास बसों के किराए में बढ़ोतरी संबंधित जानकारी नहीं है? जवाब देने में इतनी देर क्यों हो रही है?
किराए में बढ़ोतरी संबंधी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने राज्य सरकार पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
दरअसल आरोप लगे हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद निजी बसों में किराया बढ़ोतरी का कोई नियम नहीं माना जा रहा। बस कंडक्टर मन मुताबिक किराया वसूल रहे हैं और सरकार इस बारे में कुछ नहीं कर रही। इसी को लेकर हाईकोर्ट ने पहले किराए में बढ़ोतरी संबंधी नियम के बारे में राज्य सरकार के परिवहन विभाग से हलफनामा दाखिल करने को कहा था लेकिन, बुधवार को मामले की सुनवाई से पहले राज्य सरकार की ओर से कोई हलफनामा नहीं दिया गया। इसे लेकर कोर्ट ने फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने पूछा था कि राज्य में बसों के किराए का कोई पैमाना है या नहीं? इसकी कोई सूची बसों में टांगी जाती है या नहीं? सरकार की ओर से जो किराया तय किया गया है उतना ही किराया गैर सरकारी बसों में लिया जा रहा है या उससे अधिक? यात्रियों की शिकायत दर्ज करने के लिए क्या कुछ व्यवस्थाएं हैं, आदि के बारे में लिखित में जवाब देने को कहा गया था जो राज्य सरकार ने नहीं दिया है।
फरवरी महीने में अधिवक्ता प्रत्यूष पटवारी ने यह याचिका हाईकोर्ट में लगाई थी। दरअसल पश्चिम बंगाल में यह नियम है कि कि पश्चिमबंग मोटर व्हीकल एक्ट 1989 के 175 नंबर रूल के मुताबिक यात्रियों की शिकायतें लेने के लिए बसों में कंप्लेंट बुक होना चाहिए लेकिन यह राज्य के किसी भी निजी बस में उपलब्ध नहीं होता।