इतिहास के पन्नों मेंः 26 अगस्त – नजरबंदी में लोकतंत्र की आवाज

01 फरवरी 2021 को म्यांमार की सत्ता पर जबरन कब्जा करने वाली सेना ने नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित और लोकतंत्र की प्रखर आवाज मानी जाने वाली देश की प्रमुख नेता आंग सान सू को नजरबंद कर दिया जो अबतक वहां की सैन्य कोर्ट के समक्ष विभिन्न आरोपों का सामना कर रही हैं और कई मामलों में उन्हें एकतरफा सुना दी गई। दरअसल, म्यांमार की सेना के लिए आंग सान सू एक कठिन लोकतांत्रिक चुनौती की तरह रही हैं। देश में लोकतांत्रिक सरकार के गठन की मांग करते 20 जुलाई 1989 को नजरबंद की गई और 13 नवंबर 2010 को रिहा हुईं।

आंग सान सू म्यांमार के स्वतंत्रता नायक जनरल आंग सान की बेटी हैं, जिनकी 1947 में हत्या कर दी गई थी। सू की अपनी मांग के साथ 1960 में नई दिल्ली भी रहीं, जब उनकी मां को भारत में राजदूत नियुक्त किया गया था। दिल्ली की लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक आंग सान सू युवावस्था में ज्यादातर समय न्यूयॉर्क में रहीं और संयुक्त राष्ट्र में भी काम किया। लेकिन 1988 में वे जब देश में लौटी तो यहीं होकर रह गईं। उन्होंने लोकतंत्र की स्थापना की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की कमान संभाली।

8 अगस्त 1988 को देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। जिसके बाद 26 अगस्त 1988 को सू की ने यंगून में करीब दो लाख की भीड़ के सामने अपना एतिहासिक भाषण दिया और फौजी हुकूमत को चुनौती दी। यह आंग सान सू के राजनैतिक सफर की शुरुआत थी।

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