कोलकाता : कोलकाता के सुप्रसिद्ध दुर्गा पूजा की बात हो और महानगर के कुम्हारटोली का जिक्र ना हो ऐसा नहीं हो सकता। दुर्गा पूजा के लिए बहुत ही कम समय शेष रह गया है। कोरोना काल के बाद ऐसा माना जा रहा था कि मूर्तिकारों के लिए इस बार परिस्थितियां काफी बेहतर होंगी लेकिन बारिश और कच्चे माल की कमी ने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। बावजूद इसके कुम्हारटोली के मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में काफी व्यस्त हैं।
कुम्हारटोली में रहने वाले अपूर्व पाल के दादा कुम्हार थे। तब से, परिवार के सदस्य धीरे-धीरे मूर्तिकला की परंपरा में शामिल होते गये। वर्ष 1990 के स्नातक अपूर्व अब एक पूर्ण मूर्तिकार हैं। अपूर्व ने बताया कि कोरोना काल के बाद बाजार अच्छा है। उन्होंने कहा कि मैंने वर्ष 2020 और 2021 में लगभग 20 प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इस साल मैं 34 प्रतिमायें बना रहा हूं।
कोरोना काल के बाद कच्चे माल के दामों में हुई बढ़ोतरी ने कलाकारों को परेशान कर रखा है। मूर्ति बनाने वाले सभी सामानों के दाम बढ़ गए हैं। पिछली बार पांच बंडल घास 150 रुपये में बेची गई थी। इस बार यह 350 रुपये में मिल रही है। पिछले साल एक किलो कील 75 रुपये की आती थी लेकिन इस बार यह बढ़कर 90 रुपये तक पहुंच गई है। गौरीपुर की रस्सी 85 रुपये किलो से बढ़कर 115 रुपये हो गई है। मूर्ति बनाने के लिए विशेष मिट्टी की कमी से भी मूर्तिकारों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। इससे पहले उलुबेरिया में गंगा के नीचे से चिकनी मिट्टी आती थी जिसकी कीमत प्रति नाव 15 हजार रुपये थी। हर महीने करीब 80 नावें आती हैं। पुलिस-प्रशासन की सख्ती के चलते अब पांच नाव भी नहीं आ रही है। अब मूर्तियाँ दक्षिण 24 परगना के खेतों की मिट्टी से बनायी जा रही हैं।
कुछ साल पहले भारत के सबसे अच्छे मूर्तिकारों में से एक मिंटू पाल ने देशप्रिय पार्क में दुनिया की सबसे बड़ी दुर्गा प्रतिमा बनाकर धूम मचा दी थी। उनका कहना है कि इस बार उन्हें 35 मूर्तियां बनाने का ऑर्डर मिला है। इनमें से 14 बाहर की हैं। पिछले साल मूर्ति की औसत ऊंचाई लगभग 10”-11” थी। अब ऊंचाई 18”-19 ” तक पहुंच गई है। हालांकि तमाम परेशानियों के बावजूद कुम्हारटोली के मूर्तिकार पूरी तल्लीनता से प्रतिमाओं के निर्माण में लगे हुए हैं।