इतिहास के पन्नों मेंः 23 सितंबर – …अपने समय का सूर्य हूं मैं

कविता के जरिये अपने समय और दौर को मुखर स्वर देने वाले समर्थ कवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी कविता को नया अर्थ व आयाम दिया। हिंदी काव्य में दिनकर की पहचान पुरुषार्थ के प्रतीक और राष्ट्र गौरव के गायक के रूप में होती है- `सुनूं क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा, स्वयं युगधर्म का हुंकार हूं मैं।’

हिंदी कविता को जन-जन तक पहुंचाने में दिनकर ने अहम भूमिका निभाई। उनकी कविताओं की लोकप्रियता का आलम यह था कि उनकी पंक्तियां नारे की तरह इस्तेमाल हुई- `याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा।’

राष्ट्रकवि दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ। शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू करने वाले दिनकर भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे और आगे चलकर राज्यसभा के सदस्य बने। उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों में `उर्वशी’, `हुंकार’, `रश्मिरथी’, `कुरुक्षेत्र’, `परशुराम की प्रतीक्षा’ आदि हैं। गद्य की उनकी चर्चित पुस्तक `संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए वर्ष 1959 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1972 में `उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 24 अप्रैल 1974 को तिरुपति यात्रा के दौरान राष्ट्रकवि दिनकर का आकस्मिक निधन हो गया।

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