स्वस्थ समाज के लिए न्याय तंत्र में भरोसा और गति बेहद जरूरी : प्रधानमंत्री

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कहा कि न्याय तंत्र पर भरोसा और उसकी गति एक स्वस्थ समाज के लिए बेहद जरूरी है। न्याय मिलने पर देशवासियों में आत्मविश्वास और संवैधानिक व्यवस्था में आस्था मजबूत होती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को देशभर के विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया। गुजरात में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते प्रधानमंत्री ने न्याय व्यवस्था के विभिन्न पहलू और उनमें उपयुक्त बदलाव लाने संबंधी विषयों पर अपने विचार रखे।

अन्य देशों से उदाहरण लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वहां संसद या विधानसभा में एक मसौदा कानून की परिभाषा के भीतर विस्तार से समझाने के लिए तैयार किया जाता है। दूसरा कानून का मसौदा आसानी से समझने के लिए तैयार किया जाता है। इससे आम आदमी उसे समझ पाता है। इन देशों में कानून के क्रियान्वयन की समय-सीमा भी निर्धारित की जाती है और नई परिस्थितियों में कानून की फिर से समीक्षा की जाती है।

प्रधानमंत्री ने दुरुस्त न्याय व्यवस्था को ‘जीवन जीने की आसानी’ का एक महत्वपूर्ण पहलू माना। उन्होंने कहा कि देश के लोगों को सरकार का अभाव महसूस नहीं होना चाहिए और ना ही देश के लोगों को सरकार का दबाव महसूस होना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने इस दौरान विचाराधीन कैदियों का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को विचाराधीन कैदियों के संबंध में मानवीय दृष्टिकोण के साथ काम करना चाहिए ताकि न्यायिक प्रणाली मानवीय आदर्शों के साथ आगे बढ़े।

सुधारों पर विशेष जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे समाज की सबसे बड़ी विशेषता यही रही है कि हमने प्रगति के पथ में बढ़ते हुए खुद में आंतरिक सुधार किए हैं। उन्होंने कहा कि हमारा समाज अप्रासंगिक हो चुके कायदे कानूनों कुरीतियों और गलत रिवाजों को हटाता रहा है।

इसी क्रम में उन्होंने अपनी सरकार की पहल का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले 8 वर्षों में हमने इसी प्रकार के 3200 अनुपालनों को समाप्त किया है। देश ने डेढ़ हजार से ज्यादा पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर दिया है। इसमें से कई कानून गुलामी के समय से चले आ रहे थे। उन्होंने राज्यों से भी अपने यहां इसी तरह की समीक्षा करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि न्याय देने में देरी सबसे बड़ी चुनौती है और न्यायपालिका इस दिशा में पूरी गंभीरता के साथ काम कर रही है। वैकल्पिक विवाद समाधान के तंत्र पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि यह लंबे समय से भारत के गांवों में अच्छे उपयोग में लाया गया है और अब इसे राज्य स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है।

लोक अदालतों के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये देश में त्वरित न्याय का एक माध्यम बनी है। कई राज्यों में इस दिशा में बहुत सा काम हुआ है। इससे बीते वर्षों में लाखों मामलों को सुलझाया गया है। साथ ही उन्होंने तकनीक की भूमिका को भी स्वीकारा और कहा कि आज यह हमारी न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग बन गई है। इससे कोरोना काल में भी हमें लाभ -मिला। आज देश में ई-कोर्ट मिशन तेजी से आगे बढ़ रहा है।

मोदी ने आगे कहा कि देश में 5जी के आने से इन प्रणालियों को एक बड़ा बढ़ावा मिलेगा। हर राज्य को अपने सिस्टम को अपडेट और अपग्रेड करना होगा। इसे तकनीक के अनुसार तैयार करना भी हमारी कानूनी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।

संविधान की सर्वोच्चता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का मूल है। “सरकार हो, संसद हो, हमारी अदालतें हों, तीनों एक तरह से एक ही माँ की संतान हैं। इसलिए भले ही कार्य अलग-अलग हों, अगर हम संविधान की भावना को देखें, तो तर्क या प्रतिस्पर्धा की कोई गुंजाइश नहीं है। माँ के बच्चों की तरह तीनों को माँ भारती की सेवा करनी है, साथ में 21वीं सदी में भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है।

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