कोलकाता : कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक सख्त टिप्पणी कर स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार के साथ एसएससी का रुख नहीं मिल रहा है। ऐसे में एसएससी का होने का कोई औचित्य नहीं है, इसे तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु ने शिक्षकों की नियुक्ति में हुई कथित धांधली के मामले की सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की। उन्होंने पूछा कि रिक्त पदों के आंकड़े में राज्य सरकार और स्कूल सेवा आयोग के डाटा अलग-अलग क्यों हैं? न्यायमूर्ति ने कहा कि राज्य सरकार ने जो विज्ञप्ति जारी की है, उसके मुताबिक न्यायालय के निर्देशानुसार उन लोगों को नियुक्ति दी जानी चाहिए, जो शिक्षक की नौकरी के काबिल हैं और वंचित हैं। जबकि स्कूल सेवा आयोग ने उन लोगों को नियुक्त करने के लिए अतिरिक्त रिक्त पद तैयार किया, जिन्हें अवैध तरीके से नियुक्ति दी गई थी। उन्होंने राज्य सरकार से पूछा कि आखिर इस अवैध कृत्य को लेकर एसएससी के खिलाफ क्या कुछ कार्रवाई की तैयारी राज्य सरकार कर रही है? उन्होंने शुक्रवार की सुबह 10:30 बजे तक इस संबंध में पूरी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश में करने को कहा है।
न्यायमूर्ति ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी पूछा कि जब एसएससी इस तरह से अवैध काम कर रहा है तो क्या इसका मतलब यह माना जाए कि राज्य सरकार का उस पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है, अगर ऐसा है तो एसएससी को भंग कर दिया जाना चाहिए।
दरअसल, गत 11 मई को राज्य सरकार ने विज्ञप्ति जारी कर 6821 रिक्त पदों की जानकारी दी गई थी। ग्रुप सी, ग्रुप डी और 9वीं, 10वीं तथा वर्क एजुकेशन तथा फिजिकल एजुकेशन के लिए योग्य वंचित शिक्षकों को इस पर नियुक्त किया जाना चाहिए था। लेकिन स्कूल सेवा आयोग ने इन पदों पर उन लोगों की नियुक्ति का आवेदन किया था, जिन्हें गैरकानूनी तरीके से नियुक्त करने की वजह से नौकरी से बर्खास्त किया गया था। मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होनी है।