अमेरिका में बज रहा भारत का डंका

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारतीय मूल के लगभग दो करोड़ लोग इस समय विदेशों में फैले हुए हैं। लगभग दर्जन भर देश ऐसे हैं, जिनके राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री वगैरह भारतीय मूल के हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक तो इसके नवीनतम उदाहरण हैं। भारतीय लोग जिस देश में भी जाकर बसे हैं, वे उस देश के हर क्षेत्र में सर्वोच्च स्थानों तक पहुंच गए हैं। इस समय दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति और महासंपन्न देश अमेरिका है। अमेरिका में इस समय 50 लाख लोग भारतीय मूल के हैं।

दुनिया के किसी देश में इतनी बड़ी संख्या में जाकर भारतीय लोग नहीं बसे हैं। इसके कारण भारत से प्रतिभा-पलायन जरूर हुआ है लेकिन अमेरिका के ये भारतीय मूल के नागरिक सबसे अधिक संपन्न, सुशिक्षित और सुखी लोग हैं, ऐसा कई सर्वेक्षणों ने सिद्ध किया है। यदि अमेरिका में 200 साल पहले से भारतीय बसने शुरु हो जाते तो शायद अमेरिका भी मॉरिशस, सूरीनाम वगैरह की तरह भारत-जैसा देश बन जाता। लेकिन भारतीयों का आव्रजन 1965 में शुरू हुआ लेकिन इस समय मेक्सिको के बाद वह दूसरा देश है, जिसके सबसे ज्यादा लोग जाकर अमेरिका में बसते हैं। मेक्सिको तो अमेरिका का पड़ोसी देश है।

लेकिन भारत उससे हजारों किलोमीदूर दूर है। भारत के आप्रवासी प्रायः उत्साही नौजवान ही होते हैं। जो वहां पढ़ने जाते हैं, वे या तो वहीं रह जाते हैं या फिर यहां से अनेक सुशिक्षित लोग बढ़िया नौकरियों की तलाश में अमेरिका जा बसते हैं। उनके साथ उनके माता-पिता भी वहीं बसने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद भारतीय आप्रवासियों की औसत आयु 41 वर्ष है, जबकि अन्य देशों के आप्रवासियों की 47 वर्ष है। भारत के कुल आप्रवासियों में से 80 प्रतिशत लोग कार्यरत रहते हैं। अन्य विदेशी आप्रवासियों में से जबकि 15 प्रतिशत ही सुशिक्षित होते हैं, भारत के 50 प्रतिशत से अधिक लोग स्नातक स्तर तक पढ़े हुए होते हैं। भारतीय मूल के लोगों की औसत प्रति व्यक्ति आय डेढ़ लाख डॉलर प्रति वर्ष होती है, औसत अमेरिकियों और अन्य आप्रवासियों की वह आधी से भी कम यानी सिर्फ 70 हजार डॉलर होती है।

भारतीय लोगों को आप आज के दिन अमेरिका के हर प्रांत और शहर में दनदनाते हुए देख सकते हैं। अब से लगभग 50-55 साल पहले जब मैं न्यूयॉर्क की सड़कों पर घूमता था तो कभी-कभार कोई भारतीय ‘टाइम्स स्क्वायर’ पर दिख जाता था लेकिन अब हर बड़े शहर और प्रांत में भारतीय भोजनालयों में भीड़ लगी रहती है। विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों और अध्यापकों की भरमार है। अमेरिका की कई कंपनियों और सरकारी विभागों के सिरमौर भारतीय मूल के लोग हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि आज से 24 साल पहले मैंने जो लिखा था, वह भी शीघ्र हो ही जाए। ब्रिटेन की तरह अमेरिका का शासन भी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति के हाथ में ही हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *