पंचायत चुनाव से पहले तृणमूल ने शुरू किया नया मोबाइल ऐप ”दीदी का दूत”

कोलकाता : तकनीक का हाथ पकड़कर तेजी से विकसित होती दुनिया के साथ अब चुनाव प्रचार भी हाईटेक होता जा रहा है। इसी को हथियार बनाकर तृणमूल कांग्रेस ने अब आसन्न पंचायत चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर जनसंपर्क और लोगों के बीच पार्टी की साफ-सुथरी छवि स्थापित करने के लिए मोबाइल ऐप का सहारा लिया है। सोमवार को तृणमूल सुप्रीमो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे तथा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने एक साथ मिलकर पार्टी के लिए एक नए मोबाइल ऐप की शुरुआत की। इसका नाम है ”दीदीर दूत” यानि दीदी का दूत। इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकेगा।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मोबाइल ऐप की खासियत का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें राज्य सरकार की 15 फ्लैगशिप योजनाओं के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसमें कन्याश्री, युवाश्री, बांग्लार बाड़ी समेत वे तमाम योजनाएं हैं जिनसे आम लोगों को सरकारी मदद मिली हैं। उन्होंने कहा कि इस मोबाइल ऐप के जरिए राज्य भर में हुए कार्यों की निगरानी की जाएगी और लोग अपनी शिकायतें भी दर्ज करा सकेंगे।

मुख्यमंत्री ने बताया कि दो महीने तक तृणमूल कांग्रेस के 3.5 लाख कार्यकर्ता दो करोड़ परिवार यानि कम से कम 10 करोड़ लोगों तक पहुंच कर राज्य सरकार के कार्यों का प्रचार प्रसार और आकलन करेंगे। किसे कौन-सी सुविधाएं मिली है, कहां-कैसी समस्याएं हुई है, इस बारे में विस्तार से जानकारी इस मोबाइल ऐप पर भी अपलोड की जाएगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल तृणमूल कांग्रेस के शीर्ष स्तर के 350 नेताओं को इसकी निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है। ये सारे नेता घर-घर घूमेंगे और उनके चले जाने के बाद राज्यवासियों की समस्याओं की रिपोर्ट स्थानीय स्तर के नेता लेंगे।

ममता ने कहा कि दुआरे सरकार के जरिए राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को घर-घर पहुंचाया गया है और अब इस मोबाइल ऐप तथा जनसंपर्क अभियान के जरिए तृणमूल कांग्रेस घर-घर पहुंचेगी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल ही में शिक्षक नियुक्ति भ्रष्टाचार समेत आवास योजना और अन्य परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की वजह से तृणमूल कांग्रेस की काफी किरकिरी हुई है। इसमें आसन्न पंचायत चुनाव और उसके बाद के लोकसभा चुनाव में विपक्ष भ्रष्टाचार का इस्तेमाल तृणमूल के खिलाफ बहुत अधिक ना कर सके, इसमें यह जनसंपर्क अभियान और मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए लोगों की शिकायतें सुनने की कवायद निश्चित तौर पर मददगार साबित हो सकती है।

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