इतिहास के पन्नों में 18 जनवरीः मधुशाला के साथ अमर हो गए हरिवंशराय बच्चन

देश-दुनिया के इतिहास में 18 जनवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का अटूट रिश्ता अनुपम काव्य कृति मधुशाला के रचयिता हरिवंशराय बच्चन से है। आज अधिकांश लोग हरिवंशराय बच्चन को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता के रूप में जानते हैं, लेकिन अमिताभ के जन्म से कई साल पहले उनकी गिनती हिंदी साहित्य के सबसे लोकप्रिय कवियों में होने लगी थी। 18 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि होती है।

हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को कायस्थ परिवार में हुआ था। वह पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव और मां सरस्वती देवी के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्हें बचपन में प्यार से बच्चन कहा जाता था। बाद में हरिवंश ने अपने नाम से श्रीवास्तव हटाकर बच्चन लगा दिया और इसी नाम से मशहूर हुए। कहा जाता है कि उनकी कालजयी रचना मधुशाला जब छपी तो पाठकों ने अनुमान लगाया कि इसका रचयिता तो शराब के नशे में चूर रहता होगा। हकीकत यह है कि हरिवंशराय बच्चन ने ताउम्र शराब को हाथ नहीं लगाया। कवि बच्चन को तरह-तरह की कलम जमा करने का जुनून था। अपने इस शौक को पूरा करने के लिए वे किसी भी हद तक चले जाते थे।

बच्चन ने अपनी आत्मकथा ‘दशद्वार से सोपान तक’ में लिखा है- ‘कोई अच्छी कलम देखकर उसे किसी न किसी तरह हथियाने की मेरे मन में ललक उठती है। मोल और मांगे से न मिले, तो चुराने में भी संकोच न करूंगा। मेरे बेटे जब विदेश जाते हैं तो पूछते हैं कि आपके लिए क्या लाएं। मैं कहता हूं, कोई नए तरह का कलम निकला हो, तो ले आना और वे ले आते हैं। मेरे पास कलमों का अच्छा भंडार है और मैं उसे कंजूस के धन की तरह संभाल कर रखता हूं।’ हरिवंश राय बच्चन का निधन 18 जनवरी, 2003 को मुंबई में हुआ था।

बच्चन हिंदी साहित्य के छायावाद युग के प्रमुख कवि हैं। उनकी रचनाओं में तेरा हार (1932), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत-संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर-उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), 1962-1963 की रचनाएं, दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973), शामिल हैं।

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