भारत के अजीज, सीमांत गांधी के नाम से मशहूर भारत रत्न पाने वाले पहले गैर भारतीय खान अब्दुल गफ्फार खान का 20 जनवरी 1988 को पेशावर में हाउस अरेस्ट के दौरान उनका निधन हो गया। महात्मा गांधी के सहयोगी और जीवन भर अहिंसक विचारधारा की पुरजोर हिमायत करने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान की आखिरी यात्रा भी अहिंसक न रह सकी, उनकी अंतिम यात्रा में दो विस्फोट हुए जिसमें दर्जन भर लोग मारे गए।
6 फरवरी 1890 को पेशावर के पास जन्म लेने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान के पिता ने तमाम विरोधों को दरकिनार कर एक मिशनरी स्कूल में उनका दाखिला कराया। आगे चलकर उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विवि से स्नातक की पढ़ाई की। 1919 में पेशावर में मार्शल लॉ लगाए जाने के खिलाफ खान अब्दुल गफ्फार खान का राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। उन्होंने इसके खिलाफ शांति प्रस्ताव पेश किया लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर छह माह जेल की सजा सुनाई। बाद में उन्होंने खुदाई खिदमतगार नामक संगठन बनाया।
1928 में गांधीजी से उनकी पहली मुलाकात के साथ ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए और गांधीजी के करीबी सहयोगियों में गिने जाने लगे। नमक सत्याग्रह में वे गिरफ्तार किए गए और जब उनके समर्थकों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया तो ब्रिटिश सरकार ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवाई जिसमें कई लोगों की जान चली गई।
हालांकि भारत-पाकिस्तान बंटवारा उनके मोहभंग का कारण बना। वे भारत के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। जब पाकिस्तान बनने की शुरूआत हुई तो उन्होंने अंग्रेजों से अलग पश्तून देश की मांग की। उनकी मांग खारिज कर दी गई। भारी मन से खान अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान तो चले गए लेकिन वहां अलग पख्तूनिस्तान देश की मांग को लेकर अहिंसक मुहिम चलाते रहे। उनकी इस मुहिम से भड़के पाकिस्तान ने उन्हें लंबे समय तक गिरफ्तार कर जेलों में रखा। 1988 में हाउस अरेस्ट के दौरान ही उनकी मौत हुई।