इतिहास के पन्नों में 22 जनवरीः याद आते ही रुला देता है जार के रूस का वो खूनी रविवार

देश-दुनिया के इतिहास में 22 जनवरी की तारीख तमाम अहम कारणों से दर्ज है। रूस के इतिहास की यह ऐसी तारीख जिसकी याद आते ही रूह कांप जाती है। बात 20वीं सदी के पहले दशक की है। रूस में जार निकोलस द्वितीय का शासन था। लोगों में जार के शासन के खिलाफ गुस्सा था। मजदूरों की स्थिति खराब थी। 22 जनवरी 1905 (रविवार) को मजदूरी की स्थिति और काम के घंटे जैसे मुद्दों को लेकर प्रदर्शन हो रहा था। प्रदर्शनकारी सेंट पीटर्सबर्ग के विंटर पैलेस की तरफ बढ़ रहे थे। ये लोग जार निकोलस से मिलकर अपनी बात पहुंचाना चाहते थे। लेकिन, जार के पास पहुंचने से पहले ही उसके सैनिकों ने निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा दीं। इस घटना में 500 से ज्यादा लोग मारे गए थे। निहत्थे लोगों पर की गई इस गोलीबारी की घटना को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं कि इस नरसंहार से बोल्शेविक क्रांति के नाम से मशहूर 1917 में हुई रूसी क्रांति की नींव पड़ी। व्लादिमिर लेनिन ने इस क्रांति की अगुवाई की। इस क्रांति के दौरान ही जार के शासन का अंत हुआ। जार को उसकी पत्नी और पांच बच्चों समेत फांसी दे दी गई। क्रांति के बाद रूस में गृह युद्ध छिड़ गया। ये रेड आर्मी और व्हाइट आर्मी के बीच था। रेड आर्मी समाजवाद की समर्थक थी और व्हाइट आर्मी पूंजीवाद, राजशाही की समर्थक थी। 1920 में समाजवाद के विरोधी हार गए। 1922 में सोवियत संघ यानी यूएसएसआर की स्थापना हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *