– लुप्तप्राय जनजातीय समुदाय के संरक्षण के लिए अंडमान के डॉ. रतन चंद्र का भी नाम शामिल
कोलकाता : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान के लिए जिन नामों की घोषणा की, उनमें पश्चिम बंगाल के चार दिग्गज शामिल हैं। इसमें दिवंगत दिलीप महालानविस सहित 102 वर्ष के वयोवृद्ध संगीतकार मंगल कांति रॉय, जनजातीय भाषा टोटो के संरक्षक धनीराम टोटो और बुनाई की सम्मानित शिल्पकार प्रीति कन्या गोस्वामी शामिल हैं। इनके साथ ही अंडमान के डॉ. रतन चंद्र कर को भी पद्मश्री के लिए चुना गया है, जिन्होंने द्वीप समूह के जनजातीय समुदाय जारवा की बेहतरी के लिए आजीवन काम करते हुए खत्म होती जनजाति की जनसंख्या को 76 से बढ़ाकर 270 तक पहुंचाया है।
दिलीप महालनविश
ओरल रिहाइड्रेशन, कॉलरा, मलेरिया जैसे घातक रोगों के लिए रामबाण की तरह ओआरएस के इस्तेमाल का तरीका दुनिया को दिखाने वाले चिकित्सक दिलीप महालनविश को मृत्युपरांत देश का द्वितीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण देने का ऐलान किया गया है। वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय उत्तर 24 परगना से सटे बनगांव की सीमा के पास सीमा के दोनों पार के लाखों लोग कोलेरा की चपेट में आ गए थे। उसी समय महालनविश ने अपनी समझ से लोगों को नमक, चीनी और बेकिंग सोडा को पानी में मिलाकर पिलाना शुरू किया था, जिससे हजारों लोगों की जान बचाई थी। तब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ओआरएस के प्रयोग की स्वीकृति नहीं दी थी लेकिन महालनविश ने इस दुर्लभ प्रयोग को अपने रिस्क पर करके पूरी दुनिया में दिखाया कि ओआरएस का इस्तेमाल करके कैसे लोगों की जान बचाई जा सकती है। अक्टूबर, 2022 में कोलकाता में उनका निधन हो गया था।
लोक कलाकार मंगलकांति
इसी तरह से पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले से दो लोगों को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। इनमें 102 साल के मशहूर लोक गायक मंगल कांति रॉय शामिल हैं। उन्होंने अति प्राचीन वाद्य यंत्र “सारिंदा” (सारंगी) वादन को अभी भी संरक्षित कर रखा है। उनकी खूबी यह है कि सारिंदा जैसे अति पुराने वाद्य यंत्र पर पक्षियों की आवाज को आसानी से बजाते हैं। आज के समय में जब तकनीक का हाथ पकड़कर वाद्य यंत्र भी अत्याधुनिक और बेहद सरलता से इस्तेमाल योग्य हो गए हैं, ऐसे समय में सारिंदा जैसे अति पुराने और पारंपरिक वाद्य यंत्र को बचाए रखना और उसके संगीत से अत्याधुनिक वाद्य यंत्रों को फीका साबित करना अपने आप में बड़ी चुनौती है। इसे कई दशकों से उन्होंने संजो कर रखा है।
धनीराम टोटो
– इस बार पद्मश्री के लिए जलपाईगुड़ी के ही धनीराम टोटो को “टोटो” जनजाति की लिपि टोटो (डेंका) को संरक्षित करने के लिए चुना गया है। यूनेस्को ने जनजाति की इस लिपि को लुप्तप्राय की सूची में डाला है लेकिन भाषा विशेषज्ञ नहीं होने के बावजूद धनीराम टोटो ने लिपि का न केवल संरक्षण किया है बल्कि उनके अथक प्रयास से आज इसमें 37 अक्षर हैं। इसी टोटो भाषा में उपन्यास लिखने वाले वह पहले लेखक भी हैं।
प्रीति कन्या गोस्वामी
इसी तरह से दक्षिण 24 परगना की बुजुर्ग महिला प्रीति कन्या गोस्वामी की कढ़ाई और कपड़े पर बुनाई अद्भुत है। उम्र के अंतिम पड़ाव में भी कपड़े पर उनकी सुई से बनाई गई कलाकृतियां मशीनों को मात देती हैं। पश्चिम बंगाल के सीमांचल क्षेत्र में वह बेहद चर्चित और महिलाओं को प्रेरणा देने वाली महिलाओं में शामिल रही हैं। ऐसी सामान्य शख्सियत को ढूंढ कर केंद्र सरकार ने इस बार उन्हें सम्मानित करने का निर्णय किया है। खास बात यह है कि वह अकेली रहती हैं और भारत जैसे समाज में उन्होंने अकेले अपने दम पर इस कला को न केवल संरक्षित और प्रचलित किया बल्कि कई महिलाओं को प्रशिक्षित भी कर रही हैं।
डॉ. रतन चंद्र
इसी तरह से अंडमान के 66 वर्षीय डॉ. रतन चंद्र वैसे तो सेवानिवृत्त सरकारी चिकित्सक हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवन के आधे से अधिक वर्ष अंडमान के लुप्तप्राय जनजातीय समुदाय जारवा, ओंगी और ग्रेटे की प्रजनन क्षमता बढ़ाने और उनकी जनसंख्या बढ़ाने में व्यतीत किया है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। विलुप्त हो रही इन जनजातियों की संख्या को उन्होंने तीन गुना से अधिक बढ़ाई है। यह अपने आप में बेहतरी के लिए अथक परिश्रम की दास्तां है।