कोलकाता : पश्चिम बंगाल में शनिवार को पोयला (पहला) बैसाख यानी बांग्ला नववर्ष पर राज्य भर में उत्साह का आलम है। दुर्गा पूजा के बाद बंगाल में मनाए जाने वाले इस सबसे बड़े त्यौहार में सुबह से ही राज्य भर के लोग विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना करने के लिए पहुंच गए हैं। आज से नया बांग्ला कैलेंडर वर्ष 1430 शुरू हो गया है।
On the occasion of Poila Boishakh, I extend my heartfelt greetings to all fellow residents.
I wish the dawn of New Year brings an abundance of hope, happiness, & health in your lives.
Today, let's commit to the inclusive welfare & development of society.
Shubho Nobo Borsho!
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) April 15, 2023
बंगाल में रीति के अनुसार आज बांग्ला भाषी एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और बांग्ला नववर्ष की शुभकामनाओं का आदान प्रदान करते हैं। आज सभी सरकारी दफ्तरों की छुट्टियां भी हैं, इसलिए सुबह से ही कोलकाता के शक्तिपीठ, कालीघाट, दक्षिणेश्वर, लेक कालीबाड़ी के अलावा बीरभूम के मशहूर शक्तिपीठ तारापीठ और अन्य मंदिरों में पूजा करने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी है। नए कपड़े पहने हुए हर आयु वर्ग के लोग बुजुर्ग युवा युवती बच्चे महिलाएं सड़कों पर देखे जा सकते हैं। विभिन्न मंदिरों में भी सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था है।
– महाराज शशांक ने शुरू किया था बांग्ला नववर्ष
नववर्ष पर नया खाता शुरू करते हैं कारोबारी
– नियमानुसार आज बंगाली कारोबारी नए खाता की पूजा करते हैं और नया हिसाब किताब भी आज से शुरू हो जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के बाद मनाए जाने वाले इस सबसे बड़े उत्सव का अपना एक अलग इतिहास है। इसकी शुरुआत बंगाल के महान हिंदू शासक शशांक के समय से मानी जाती है। मौर्य वंश के इस शासक का राज्याभिषेक पहले वैशाख को ही हुआ था और तभी से नए बांग्ला संवत्सर की शुरुआत मानी जाती है। 600 से 700 ईस्वी में शुरू हुए शशांक के शाशन को बंगाली शासन का गौरवमयी साल भी कहा जाता है। तब बंगाल राज्य की सीमा पूरे देश में सबसे बड़ी होती थी और शशांक के शासन में हर समुदाय के लोग स्वतंत्रता पूर्वक अपने पंथ का पालन कर सकते थे। बैशाख महीने के पहले दिन से मनाए जाने वाले इस त्यौहार को लेकर बंगाली समुदाय की बंगालियत की भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। बाद में इसे मुगल सम्राट अकबर और बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खां ने आधिकारिक रूप से स्वीकार कर बंगाली कैलेंडर भी घोषित किया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख सुभाष भट्टाचार्य ने कहा कि आज से बांग्ला नववर्ष 1430 की शुरुआत हो गई है। इतिहास को कई जगह विकृत कर इस तरह का प्रचार किया जाता है कि अकबर ने इसकी शुरुआत की थी जबकि अकबर के शासन के काफी पहले महाराजा शशांक ने वैशाख के पहले दिन ही राज्याभिषेक के साथ बंगाली नववर्ष की शुरुआत की थी। हिंदू काल गणना रिति के अनुसार उन्होंने नए कैलेंडर भी जारी किए थे जो हिंदू वैदिक सौर मास पर आधारित है। इसे बांग्ला कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है।
अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है त्यौहार
उल्लेखनीय है कि पोयला बैसाख का त्यौहार पश्चिम बंगाल के साथ ही असम, त्रिपुरा और ओडिशा के भी कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन बंगाली समुदाय अपने घरों के मुख्य दरवाजों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर रंगोली बनाते हैं। इसके अलावा लाल रंग का स्वास्तिक बनाना भी शुभ माना जाता है। मुख्य रूप से प्रथम पूज्य गणेश और सुख समृद्धि की देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। कई जगहों पर बंगाली कैलेंडर का वितरण भी होता है। कुछ जगहों पर तो मंदिरों में कुमारी पूजा भी की जाती है और देवी की आराधना भी होती है।