कोलकाता : स्कूली शिक्षकों की भर्ती में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के बाद अब राज्य के सरकारी कॉलेजों में प्राचार्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में भी अनियमितता के आरोप लगे हैं। शिक्षकों के संगठन वेस्ट बंगाल कालेज एंड यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (वेबकूटा) के महासचिव केशव भट्टाचार्य ने बुधवार को कहा कि इसे लेकर कई शिकायतें मिली हैं। इस संबंध में राज्यपाल डॉ सीवी आनंद बोस को ईमेल किया गया है। हालांकि सीएससी यानी कॉलेज सेवा आयोग ने अनियमितताओं के आरोपों का खंडन किया है।
सीएससी के माध्यम से प्राचार्य पद के लिए मनोनीत उम्मीदवारों के एक वर्ग ने शिकायत की कि गत दिनों हुई काउंसलिंग के दौरान प्राचार्य विहीन महाविद्यालयों की सूची और किस महाविद्यालय का चयन किस अभ्यर्थी ने किया, इसका खुलासा नहीं किया गया। कई उम्मीदवारों ने अपना पसंदीदा कॉलेज नहीं मिलने के बाद प्राचार्य पद को खारिज कर दिया। पैनल पर निजी कॉलेजों में पढ़ाने का अनुभव रखने वाले उम्मीदवारों को फिर विभिन्न कॉलेजों में प्रिंसिपल बनने का अवसर दिया जाता है।
पहले शिकायत की गई थी कि प्रमुख उम्मीदवारों के ”स्कोर” या अंकों का खुलासा नहीं किया गया है। केवल नामों की सूची प्रकाशित की गई है। किसे कितना स्कोर मिला, यह स्पष्ट नहीं है। प्राचार्यों की इस सूची में निजी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में समृद्ध शिक्षण अनुभव वाले कई उम्मीदवार हैं।
पीड़ित अभ्यर्थियों का दावा है कि सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेजों में प्राचार्य बनने के लिए यूजीसी या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तय वेतनमान पर कम से कम 15 साल का कार्यानुभव होना जरूरी है। उनकी नियुक्ति के दस्तावेज सरकार के पास रहते हैं। सवाल उठता है कि जो निजी कॉलेजों से प्राचार्य नियुक्ति पैनल में आए थे, क्या उन्होंने उस वेतन पर काम किया है?
सीएससी या पीएससी या लोक सेवा आयोग के माध्यम से निजी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती नहीं की जाती है। वे संबंधित कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के शासी निकायों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। उन्होंने 15 साल तक पढ़ाया है या नहीं, इसकी पुष्टि कैसे की जा रही है, ये तमाम सवाल भी खड़े होते हैं।
हालांकि, सीएससी के अध्यक्ष दीपक कर ने दावा किया कि पूरी प्रक्रिया राज्य सरकार के भर्ती नियमों और यूजीसी के नियमों के अनुसार की गई है, कोई अनियमितता नहीं हुई है।