इतिहास के पन्नों में 23 मईः हिमालय से भी ऊंची जिद है बछेंद्री पाल की

देश-दुनिया के इतिहास में 23 मई की तारीख तमाम अहम कारणों से दर्ज है। यह तारीख भारत और भारतीय महिलाओं के लिए कई मायने में खास है। इसी तारीख को 1984 में भारत की बछेंद्री पाल ने दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा फहराया था। हिमालय के शिखर को छूकर वह ऐसा करने वाली देश की पहली महिला पर्वतारोही बनीं। बछेंद्री ने हिमालय की ऊंचाई को अपने 30वें जन्मदिन से महज एक दिन पहले छुआ। 24 मई, 1954 को उनका जन्म उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गांव नकुरी में हुआ था। इस तरह से उन्होंने खुद को और पूरे देश को अपने जन्मदिन का अनमोल उपहार दिया।

बछेंद्री ने बीएड तक की पढ़ाई पूरी की। मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। तब उन्होंने ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ कोर्स के लिए आवेदन किया। यह उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।1982 में एडवांस कैंप के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैंप में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी। हालांकि पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने की वजह से उन्हें परिवार और रिश्तेदारों के विरोध का सामना करना पड़ा।

बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौका 12 साल की उम्र में तब आया, जब उन्होंने अपने स्कूल में साथ पढ़ने वाली कुछ लड़कियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ तो इसमें बछेंद्री समेत सात महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया। इस टीम ने 23 मई, 1984 को अपराह्न एक बजकर सात मिनट पर 29,028 फीट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर ‘सागरमाथा (एवरेस्ट)’ पर भारत का झंडा लहराया। इसके साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाली वे दुनिया की पांचवीं महिला बनीं। इसी साल उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। उन्होंने 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता (अब कोलकाता) तक 2,500 किलोमीटर लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत शृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किलोमीटर लंबा अभियान उन्होंने पूरा किया। इसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास कहा जाता है। बछेंद्री पाल के साहस को सलाम करती हिंदी के सुपरिचित कवि-कथाकार शैलेय की कविता है- हताश लोगों से बस एक सवाल हिमालय ऊंचा या बछेंद्री पाल?

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