अंतरिक्ष में इसरो की एक और छलांग : भारत की आत्मनिर्भर उड़ान, NVS-01 सैटेलाइट की सफल लॉन्चिंग

श्रीहरिकोटा : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से नई पीढ़ी का नेविगेशन सैटेलाइट को सुबह 10 बजकर 42 मिनट पर लॉन्च किया गया. इस सैटेलाइट का नाम है NVS-01 है, जिसे जीएसएलवी-F12 रॉकेट के जरिए लॉन्च पैड-2 से छोड़ा गया। 19 मिनट बाद NVS-01 उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में लॉन्च किया गया। प्रयोग सफल होने पर वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे को बधाई दी।

इसरो द्वारा सोमवार को किए गए इस प्रयोग की सफलता से स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम पूरी तरह उपलब्ध हो जाएगा। उपग्रह बारह वर्षों तक सेवाएं प्रदान करेगा। नविक नाम से घरेलू नेविगेशन सेवाएं जल्द ही शुरू की जाएंगी। यह सैटेलाइट भारत और उसकी सीमाओं के चारों तरफ 1500 किलोमीटर तक नेविगेशन सेवाएं देगा. . यह सैटेलाइट मुख्य रूप से एल-1 बैंड के लिए सेवाएं देगा.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने लॉन्च हुई सैटेलाइट NVS-01 पर जानकारी देते हुए बताया कि फिलहाल भारत सात पुराने नाविक सैटेलाइट्स से काम चला रहा था, लेकिन उनमें से तीन खराब हो चुके और केवल 4 काम कर रहे थे. डॉ. एस सोमनाथ ने बताया कि तीनों सैटेलाइट को बदलते तब तक बाकि चार भी खराब हो जाते. इसे ध्यान में रखते हुए पांच नेक्स्ट जेनरेशन नाविक सैटेलाइट्स एनवीएस को छोड़ने का फैसला लिया गया. श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 2,232 किलोग्राम का यह ट नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को मजबूत करने के लिए NAVIK-01 नामक एक नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च किया गया था। NAVIK-01 उपग्रह को L-5 और S-बैंड सिग्नल के साथ संचालित करने के लिए नया डिज़ाइन किया गया है।

सैटेलाइट NVS-01 अगले 12 साल तक काम करेगी. ये सैटेलाइट NVS-01 दो सोलर पैनल से एनर्जी लेगा, जिससे इस 2.4kW की ऊर्जा प्राप्त होगी. इसके अतिरिक्त सैटेलाइट में लगे लिथियम-आयन बैटरी की चार्जिंग भी होगी. इस नेविगेशन सैटेलाइट में स्वदेश निर्मित रूबिडियम एटॉमिक क्लॉक का इस्तेमाल भी किया जा रहा है, जो बेहतरीन और सटीक लोकेशन, पोजिशन और टाइमिंग बताने पूरी तरह प्रदान करेगा।

यह उपग्रह भूमि, जल और वायु मार्गों की स्थिति और दिशाओं जैसी कई सुविधाएं आपात स्थिति में पृथ्वी से संबंधित जानकारी प्रदान करेगा, वाहन चालकों को दिशा देगा और इंटरनेट से जोड़ेगा। यह भारत की विमानन, नौवहन और सैन्य जरूरतों में भी योगदान देगा।

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