अपने गीतों के जरिये लोगों में आजादी का नया जोश भरने वाले और राष्ट्र को झंडा गीत देने वाले भारत माता के सच्चे सपूत श्यामलाल गुप्त पार्षद ने 10 अगस्त 1977 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
16 सितंबर 1893 में कानपुर जिले के नरबल कस्बे के साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर उनका जन्म हुआ था।श्यामलाल पार्षद 1921 में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार किए गए। 1930 के नमक आंदोलन के दौरान भी उनकी गिरफ्तारी हुई। 1932, 1942 और 1944 के दौरान वे लंबे समय तक भूमिगत रहे।
1924 में स्वधीनता आंदोलन के चरम पर था, उन्हीं दिनों महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने झंडागान लिखा- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा, सदा शक्ति बरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला। इस गीत को कांग्रेस ने स्वीकार किया और 1925 में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में गांधीजी की मौजूदगी में यह गीत ध्वजारोहण के दौरान पहली बार सामूहिक रूप से गाया गया। यह गीत जनचेतना को जगाने वाला साबित हुआ।
स्वाधीनता संग्राम को लेकर समर्पित श्यामलाल गुप्ता ने संकल्प लिया था कि जबतक देश आजाद नहीं होगा, तब तक वे जूता-चप्पल नहीं पहनेंगे और धूप व बारिश में छाता भी नहीं लगाएंगे। हालांकि आजादी मिलने के बाद भी नंगे पांव ही रहे।
15 अगस्त 1952 को उन्होंने लालकिले से झंडागीत का गान कर इसे देश को समर्पित किया था। 26 जनवरी 1973 को उन्हें पद्मश्री दिया गया।