कोलकाता : सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के करीबी माने जाने वाले पश्चिम बंगाल के विभिन्न राज्य विश्वविद्यालयों के सेवानिवृत्त कुलपतियों के एक संघ ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। आनंद बोस पर सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को नियुक्त करने संबंधी विधेयक में जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया है।
एजुकेशन फोरम ने दावा किया है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधान सभा में बहुमत से पारित किसी भी विधेयक को एक निश्चित अवधि के लिए रोकने या उस पर रोक लगाने की अनुमति नहीं देता है।
एजुकेशन फोरम की ओर से ओम प्रकाश मिश्रा ने दावा किया, “सवाल यह नहीं है कि हम क्या सोचते हैं या राज्यपाल इस मामले में क्या सोचते हैं। सवाल यह है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 क्या है, जो किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल की सहमति के लिए प्रस्तुत करने की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है। इस संबंध में कहते हैं।”
उन्होंने कहा कि मंच के पदाधिकारियों ने इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है और उन्होंने इस मामले में कानूनी पहलुओं पर चर्चा शुरू कर दी है।
हालांकि, भाजपा की राज्य इकाई इस मामले में राज्यपाल के साथ खड़ी है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य के अनुसार, एक भी सही सोच वाला व्यक्ति राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने के विचार का समर्थन नहीं कर सकता है।
भट्टाचार्य ने कहा कि अगर इस मामले पर जनमत संग्रह होता है तो मुझे यकीन है कि 80 प्रतिशत वोट विधेयक की सामग्री के खिलाफ होंगे। यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस के भीतर सही सोच वाले व्यक्ति भी इस विचार का विरोध करेंगे। राज्य में शिक्षा व्यवस्था खराब है। इसलिए राज्यपाल सही रास्ता अपना रहे हैं।
उक्त विधेयक हाल ही में राज्य विधानसभा में बहुमत से पारित हुआ, जिसके पक्ष में 167 और विपक्ष में 55 वोट पड़े।