बंगाल में देवी दुर्गा को सिंदूर लगाकर नम आंखों से विदाई, धनुची नृत्य से सराबोर हुए पूजा पंडाल

कोलकाता : शारदीय नवरात्रि के आखिरी दिन विजयदशमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल के विभिन्न पूजा पंडालों में सिंदूर खेला और धनुची नाच की धूम रही। देवी दुर्गा के पैरों पर सिंदूर अर्पित कर पहले मां की मांग भरी जाती है। उसके बाद उसी सिंदूर से सुहागन महिलाएं एक-दूसरे की सुहाग की सलामती के लिए मांग भरती हैं। जिसके बाद देवी के गीत पर एक पारंपरिक नृत्य होता है, जिसे धनुची नाच कहते हैं। हाथों में धूप दानी लेकर महिलाओं का यह नृत्य देखने लायक मनमोहक होता है। जैसे मायके से बेटी को सिंदूर लगाकर ससुराल के लिए विदा किया जाता है ठीक उसी तरह से 10 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा अर्चना के बाद उन्हें सिंदूर लगाकर महिलाएं नम आंखों से विदा करती हैं।

दरअसल, बंगाल में माना जाता है कि मां दुर्गा धरती की बेटी हैं जो स्वर्ग (कैलाश) से यानी अपने ससुराल से अपने मायके 10 दिनों के लिए अपने बच्चों के साथ आती हैं। एकादशी से नवमी तक अपने मायके में रहने के बाद दशमी के दिन अपनी सुहागन बेटी को मांएं सिन्दूर लगाकर और मिठाई खिलाकर हंसते-नाचते हुए विदा करती हैं। इसी परंपरा को निभाते हुए नवरात्रि के आखिरी दिन यानी दशमी, जिसे बंगाल में विजयादशमी कहा जाता है, के दिन महिलाएं एक दूसरे को सिन्दूर लगाती हैं।

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करीब 450 साल पहले हुई थी सिंदूर खेल की शुरुआत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सिन्दूर खेला की शुरुआत करीब 450 साल पहले हुई थी। यूं तो सिन्दूर खेला में मूल रूप से विवाहित महिलाएं ही शामिल होती हैं लेकिन आधुनिक युग में अविवाहित कन्याएं भी सिन्दूर खेला में शामिल होती हैं। फर्क बस इतना होता है कि अविवाहित युवतियों को मां दुर्गा को मिठाई खिलाने या सिन्दूर लगाने का अधिकार नहीं होता है और ना ही उनके सिर पर कोई दूसरी महिला सिन्दूर लगाती हैं। हां, गालों पर सिन्दूर लगाकर अविवाहित युवतियों को भी विजयादशमी की बधाई जरूर दी जा सकती है।

दक्षिण कोलकाता के प्रसिद्ध दुर्गा पूजा पंडाल सुरुची संघ में आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा में बड़े-बड़े सेलिब्रिटी भी शामिल हुए हैं। सुबह से लेकर रात भर सुरुची संघ के दुर्गा पूजा पंडाल के बाहर हजारों लोगों की भीड़ जमी रही, जिसमें बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की कई सेलिब्रिटी शामिल हुई हैं। इसी तरह से कोलकाता का एकडलिया दुर्गा पूजा पंडाल मां दुर्गा की परंपरागत मूर्ति के लिए विख्यात है। इस दुर्गा पूजा पंडाल में कभी भी किसी खास थीम के आधार पर ना तो सजावट की जाती है और ना ही मां दुर्गा की मूर्ति तैयार होती है। इस दुर्गा पूजा पंडाल में होने वाली सिन्दूर खेला में शामिल होने के लिए स्थानीय इलाकों की महिलाएं तो आती ही हैं, साथ में दूर-दराज के इलाकों से भी वैसी महिलाएं जरूर आती हैं जिन्हें थीम पूजा से ज्यादा परंपरागत पूजाएं पसंद होती हैं।

बागबाजार सार्वजनिन दुर्गा पूजा कमेटी में भी हर साल एक विशेष स्वरूप की मां दुर्गा की मूर्ति तैयार की जाती है। यहां मां दुर्गा की लंबी और खींची हुई आंखों वाली प्रतिमा की पूजा होती है। इसके साथ इस दुर्गा पूजा पंडाल की खासियत यहां शाम के समय होने वाली आरती है। इस दुर्गा पूजा कमेटी की सिन्दूर खेला में खुद राज्य सरकार की मंत्री डॉ शशि पांजा हर साल शामिल होती हैं।

शोभा बाजार राजबाड़ी एक जमींदार परिवार की दुर्गा पूजा है। इसमें जितनी चमक-दमक होनी चाहिए, वह शोभा बाजार राजबाड़ी की दुर्गा पूजा में जरूर देखने को मिलती है। यूं तो इसे जमींदार परिवार की दुर्गा पूजा कहा जाता है लेकिन यहां सभी लोगों को प्रवेश करने की अनुमति होती है। इस दुर्गा पूजा में भी सेलिब्रिटी अक्सर आते रहते हैं।

बादामतल्ला आषाढ़ संघ दक्षिण कोलकाता के बेहतरीन दुर्गा पूजा कमेटियों में है। यहां दुर्गा पूजा कालीघाट इलाके में होती है। हालांकि इस इलाके में एक से बढ़कर एक कई दुर्गा पूजाएं होती हैं लेकिन बादामतल्ला आषाढ़ संघ का नाम काफी लोकप्रिय है। यहां थीम पूजा के आधार पर पंडाल की सजावट हुई है। इस दुर्गा पूजा पंडाल में सिन्दूर खेला काफी प्रसिद्ध है, जिसमें विदेश से आने वाली कई पर्यटक भी शामिल हुई हैं।

उत्तर कोलकाता के प्रमुख दुर्गा पूजा पंडालों में आहिरी टोला सार्वजनिक दुर्गा पूजा का नाम है। यहां भी बड़े पैमाने पर महिलाओं ने हिस्सा लेकर सिंदूर खेला किया है।

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