West Bengal : राज्यपाल ने एक वर्ष पूरे होने पर कहा : सरकार और राजभवन के बीच तालमेल जरूरी, बंगाल में हिंसा चिंताजनक

कोलकाता : तृणमूल सरकार के साथ अपने संबंधों में बढ़ते तनाव के बीच, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने अपने आधिकारिक आवास राजभवन में “जासूसी” के प्रयासों का आरोप लगाया है। बोस ने मंगलवार अपने राजपाल बनने के एक साल पूरे होने के मौके पर मीडिया से बातचीत में दावा किया कि उनके पास कोलकाता में गवर्नर हाउस में “जासूसी” के बारे में “विश्वसनीय जानकारी” है।

बोस ने कहा कि मामला संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह एक सच्चाई है। मेरे पास राजभवन में जासूसी के बारे में विश्वसनीय जानकारी थी। उस मुद्दे को संबंधित अधिकारियों को भेज दिया गया है। मैं इंतजार करूंगा और देखता रहूंगा।

हालांकि, बोस ने यह नहीं बताया कि कथित जासूसी प्रयास के पीछे कौन हो सकता है।

अपने पूर्ववर्ती की तरह, बोस का राज्य सरकार के साथ कई मुद्दों पर तनावपूर्ण संबंध रहा है।

इस महीने की शुरुआत में, बोस ने रवींद्रनाथ टैगोर के नाम वाली नई पट्टिकाओं की स्थापना पर विश्व भारती विश्वविद्यालय से रिपोर्ट मांगी थी। उन्होंने राजभवन के उत्तरी द्वार का नाम भी बदलकर ”गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर गेट” रख दिया।

बंगाल में हिंसा की संस्कृति
एक बार फिर राज्यपाल ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा के संस्कृति है। उन्होंने राज्य सरकार और राज भवन के बीच बेहतर तालमेल की कमी पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि सरकार को राजनीतिक सुचिता का ख्याल रखते हुए राजभवन के साथ बेहतर तालमेल होना चाहिए।

16 नवंबर को बोस ने आरोप लगाया कि बंगाल की राजनीति में हिंसा की संस्कृति है। तृ़णमूल कार्यकर्ता की हत्या पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा था कि कानून अपना काम करेगा।

मंगलवार को उन्होंने कहा कि हम निश्चित रूप से इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे और राजभवन भी अपना कर्तव्य निभाएगा। हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक उपाय भी होने चाहिए। हिंसा बंगाल की राजनीति को प्रभावित कर रही है। हिंसा की यह संस्कृति बंद होनी चाहिए।

इससे पहले, पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने राज्यपाल की ओर से विधेयकों को मंजूरी देने में देरी की ओर इशारा किया था।

बोस ने इस बारे में भी कहा कि राज्य सरकार से स्पष्टीकरण की आवश्यकता वाले या अदालतों के विचाराधीन मामलों को छोड़कर, उनके पास कोई बिल लंबित नहीं था।

बोस और राज्य सरकार के बीच विश्वविद्यालय के कुलपतियों की नियुक्ति, राज्य के स्थापना दिवस, केंद्र द्वारा मनरेगा का बकाया रोकने और राजनीतिक हिंसा से जुड़े मुद्दों पर टकराव रहा है।

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