देश-दुनिया के इतिहास में 11 दिसंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह ऐसी तारीख है, जिसने 1998 में हर देशप्रेमी की आंखें नम कर दी थीं। दरअसल 11 दिसंबर 1998 को प्रसिद्ध कवि और गीतकार प्रदीप अपना नश्वर शरीर त्याग कर शब्दों की आकाशगंगा में विलीन हो गए थे। वो अपने पीछे गुनगनाने को छोड़ गए अपने गीत। इनमें खास है -‘ऐ मेरे वतन के लोगों/जरा आंख में भर लो पानी/ कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के फिर ना आए…’की याद। आजादी के बाद से उनकी ये पंक्तियां गीतों का सिरमौर बनी हुई हैं। यह पंक्तियां नस-नस में देशभक्ति का जज्बा पैदा करती हैं।उन्होंने एक साक्षात्कार में इस गीत की रचनात्मकता के पीछे की कहानी बताई थी। उन्होंने कहा था-1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की पराजय से लोगों का मनोबल गिर गया था। तब सरकार की तरफ से फिल्म जगत के लोगों से ये अपील की गई कि-भई अब आप लोग ही कुछ करिए। कुछ ऐसी रचना करिये कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के गम पर मरहम लगाया जा सके।
उसके बाद प्रदीप जी ने यह गीत लिखा। इसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी। इसे सुनकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गईं थीं। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की थी। आज भी जब यह गीत बजता है, तो लोग ठहर जाते हैं। रोंगटे खड़े हो जाते हैं। प्रदीप यह भी लिख गए हैं- इंसान का इंसान से हो भाईचारा/यही पैगाम हमारा/यही पैगाम हमारा। यह 1959 में बनी फिल्म ‘पैगाम’ का मशहूर गीत है। सी रामचंद्रन के संगीत से सजे इस गीत को मन्ना डे ने आवाज दी थी। गाने की पंक्तियां सही मायने में गंगा-जमुनी तहजीब से लोगों का परिचय करवाती हैं। उनके गीतों में सामाजिक न्याय की आवाज मुखर होती है। पुरानी, रूढ़ हो चुकी मान्यताओं के प्रति नकार है। प्रेम, सद्भाव और एकजुटता का संदेश है। भाईचारे का आह्वान होता है।
इस फिल्म के इस गीत में वो यह लिख गए हैं-हरेक महल से कहो कि झोपड़ियों में दिये जलायें/ छोटों और बड़ों में अब कोई फर्क नहीं रह जायें/ इस धरती पर हो प्यार का घर-घर उजियारा/यही पैगाम हमारा/ यही पैगाम हमारा। और 1943 की सुपर-डुपर हिट फिल्म किस्मत के गीत ” आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकरा है/ दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश भी दिए थे। इसके बाद वो भूमिगत हो गए थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। वतन पर मर मिटने का जज्बा और जुनून पैदा करने वाले इस गीतकार को भारत सरकार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है।