कोलकाता : पुरी पीठाधीश्वर निश्चलनानंद सरस्वती ने एक बार फिर दोहराया है कि वह अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे।
वह शनिवार को पश्चिम बंगाल के गंगा सागर मेले में हिस्सा लेने पहुंचे। उन्होंने किसी का नाम लिए बिना इशारों में कहा, ‘कहा जाता है कि श्रीराम जी यथास्थान प्रतिष्ठित हों, आवश्यक है। लेकिन शास्त्र सम्मत विधि के अनुपालन करके ही उनकी प्राण प्रतिष्ठा हो, यह भी आवश्यक है। जो प्रतिमा होती है, विग्रह होता है, मूर्ति होती है, विधिवत उसमें भगवत का सन्निवेश होता है।’
उन्होंने कहा, ‘विधिवत पूजा प्रतिष्ठा न होने पर उस प्रतिमा में अड़चन आती है। विग्रह में, मूर्ति में डाकनी, शाकनी, भूत प्रेत-पिशाच इन सबका प्रवेश हो जाता है। वे डाकनी, शाकनी, भूत-प्रेत, पिशाच विप्लव मचा देते हैं। शास्त्र सम्मत विधि से राम जी की प्रतिष्ठा हो। पूजन इत्यादि का प्रकल्प भी शास्त्र सम्मत विधा से हो। मैं एक संकेत करता हूं। संविधान का अर्थ ही होता है, विधि और निषेध। इतनी-सी बात है। किसी शंकराचार्य में मतभेद नहीं है।’
उन्होंने कहा कि विधि का अनुपालन करने से व्यक्ति गंतव्य तक पहुंचता है। तो फिर शास्त्र सम्मत निषेध का अनुपालन करने से ही शास्त्र सम्मत फल मिलता है। यह कटु सत्य है।
हर क्षेत्र में राजनेता को दखल नहीं देनी चाहिए
एक सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा, ‘राजनेताओं की अपनी सीमा होती है, उनका दायित्व होता है। संविधान की सीमा में, धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में विधि का पालन विधिवत हो।’
उन्होंने अयोध्या जाने के सवाल पर कहा कि हमारी अपनी कोई सीमा है। हम कहां जाएं, कहां नहीं जाएं। क्या भोजन करें, क्या नहीं करें। किस क्षेत्र में हस्तक्षेप करें, किस क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें। शासकों पर शासन करने का अधिकार शंकराचार्य का है। फिर मूर्ति प्रतिष्ठान को लेकर शास्त्र सम्मत विधि से कार्य होना चाहिए। मैं 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जा रहा हूं। अयोध्या से मैं नहीं रूठा हूं। अयोध्या जाता रहता हूं लेकिन मेरा कार्यक्रम अयोध्या जाने का नहीं है।